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हिन्द देश है तन हमारा हिन्दी हमारी जान है इसी से धड़कता है ये दिल इसी से हमारा मान है ! रखती है हमें बांधकर एक सुगंधित माला में सीखते ...
तू ही रोशनी है ,तू ही चाँद है
खुदा से मेरा ,तू ही संवाद है
मैं तो ठहरा एक बंजर भूमि
तू ही उर्वरता , तू ही खाद है
हरपल रहती हो,इस दिल में
दूरी ही बस एक अपवाद है
सबसे है दोस्ती , तेरे कारण
किसी से न कोई विवाद है
तू ही है प्रार्थना रब से मेरी
तू ही भगवन का प्रसाद है
रोज़ " तू ही धड़के दिल में
तुझसे ही दिल ये आबाद है
जिंदगी तो है इक खेल निराला
अब ये खेल तो हमें खेलना है
माना कठिन समय आजकल
पर आगे तो इसको धकेलना है
पल पल क्यों बदलता रहता है
बिन मतलब के चलता रहता है
रोक न पाये कोई इसे कभी भी
हरदम क्यों ये मचलता रहता है
हो जाओ सब मजबूत साथियों
न जाने कितना और झेलना है
जिंदगी है............
मिल कर सब इसके साथ चलो
हाथो में डाल सब ये हाथ चलो
छोड़ के झगडे अपने अब तुम
डाल नाक में इसके नाथ चलो
हो जाये जिंदगी रंगीन सबकी
ऐसा रंग कोई तुम्हे उड़ेलना है
जिंदगी तो है......
चौंकें ये ऐसा कोई काम कर दो
ग़म सबके तुम मिलके हर दो
फैला दो खुशियाँ ही खुशियाँ
हर किसी की झोली ये भर दो
मुश्किल नही तुम्हारे लिये कुछ
करनी नही कोई अवेहलना है
जिंदगी तो है.......
जीवन है जैसा आगे बढाना है
नित नई मंजिल इसे चढ़ाना है
करके कुछ जतन आज ही इसे
आसमान तक अब यूँ चढाना है
कोई भी बहाना तुम्हे "उज्ज्वल "
इससे बचने का नही पेलना है
जिंदगी तो है........
जिंदगी तो है इक खेल निराला
अब ये खेल तो हमें खेलना है
माना कठिन समय आजकल
पर आगे तो इसको धकेलना है
आँखो में नींद नही है
दिल में प्यार नही है
बाँट ले दर्द मेरा आज
ऐसा कोई यार नही है
हंस लू खिलखिला के
ऐसा कोई वार नही है
काट दे इस तन्हाई को
ऐसा हथियार नही है
बेरुही सी हुई जिंदगी
उसका आकार नही है
बैचेनी इतनी कि मानो
जीवन साकार नही है
चूक रहे है हर निशाने
छुरीमें अब धार नही है
पता नी क्यों खिन्न हूँ
किसीसे तकरार नही है
चलता रह तू ,चलता रह तू साथी रे
जीतेगा जहाँ, तू सिकंदर की भाँति रे
नाम हर जगह ,होता है विजेता का
गीत दुनियाँ , सिर्फ जीत के गाती रे
चलता रह तू............................
सच्चा प्रयास ,व्यर्थ कभी ना जाता रे
कोशिश वाला ,हर बार जीत जाता रे
होती है बिछड़न ,अपनो से थोड़ी सी
पर अंत में,सब कुछ है मिल जाता रे
लगती थी बिछड़न, जो तुझको बुरी
संग कामयाबी ,है बहुत वो सुहाती रे
चलता रह तू............................
है तेरे पासअब , हौंसले का भंडार रे
है साथ खड़ा , तेरे सारा परिवार रे
दूर नही है , कोई भी मंजिल तुझसे
है बढाना तुझे,क़दम बस एक बार रे
निडर होकर , चल पड़ता जो सीधा
कोई बाधा , उसको न रोक पाती रे
चलता रह तू...........................
जीत ले तू , जिंदगी की हर जंग रे
चाहे कोई न हो,अंत तक तेरे संग रे
अंधकार सा ,फैला है चारों और जो
भर दे अब,उसमे रंग बिरंगे तू रंग रे
माना उजड़ी सी , बंजर भूमि है ये
पर बंजर में ही , हरियाली आती रे
चलता रह तू...........................
होने वाला है , अद्भुत एक सवेरा रे
आने वाला समय ,बस होगा तेरा रे
ये है सबकुछ, तेरी मेहनत का फल
याद रखना , थोड़ा सहयोग मेरा रे
नही भूलना , किसी को 'उज्ज्वल '
संग हो अपने,खुशियाँ बढ़ जाती रे
चलता रह तू..........................
चलता रह तू ,चलता रह तू साथी रे
जीतेगा जहाँ, तू सिकंदर की भाँति रे
नाम हर जगह ,होता है विजेता का
गीत दुनियाँ , सिर्फ जीत के गाती रे
संजय किरमारा 'उज्ज्वल '
टेंशन छोड़ो और जिंदगी के सबसे बड़े परिवर्तन का मजा लो
दोस्तों इस फैँसले से फायदा होगा या नुकसान ये तो भविष्य के गर्भ में है । लेकिन मैं इसे स्वीकार करता हूँ और इसका स्वागत करता हूँ ।हमें नोटबंदी से कोई समस्या नही । आज लाइन में लगे तो पाँच छह घंटे नम्बर नही आया तो बिल्कुल भी दुःख नही हुआ । क्योंकि ये मेरे लिये कोई नई चीज़ नही है ,हम भारतीयों का तो जन्म ही लाइन में लगने के लिये होता है ।
सबसे पहले जब बचपन के दिनो को याद करता हूँ तो याद आता है कि सस्ते राशन के लिये भी लाइन में लगता था ।
उसके बाद हॉस्पिटल याद आता है जहाँ बीमार लोग भी चार पाँच घंटे आराम से लाइन में गुजार लेते है
फ़िर याद आता है सहकारी समिति का वो दृश्य जहाँ एक हरा थका किसान भी पाँच छह घंटे खाद बीज के लिये गुजारता रहा है जबकि अनेकों बार तो उसका नम्बर आने से पहले ही स्टाक ख़त्म हो जाता है ।
फ़िर याद आते है पढाई के वो दिन जब साला एक भी सर्टिफिकेट तीन चार घंटे लाइन में लगे बिना नही बना चाहे वो जन्म प्रमाण पत्र हो या रिहायशी प्रमाण पत्र । तब तो हमें कभी भी कुछ गलत नही लगा ।
फ़िर याद करता हूँ जॉब के लिये दिये गये साक्षात्कार - ऐसा शायद ही कोई इंटरव्यू हुआ होगा जिसमे पाँच छह घंटे से पहले नम्बर आया हो ,इसलिये मुझे कुछ भी नया नही लगा ।
फ़िर आते है याद वो सारे धार्मिक सफर जो जिंदगी में कुछ अच्छा पाने के लिये किये थे चाहे वो शिरडी हो , तिरुपति हो या वैष्णो देवी कभी भी पाँच सात घंटे की लाइन बिना नम्बर नही आया तो आज मैं उदास क्यों ?
रेलवे टिकट के लिये भी घंटा दो घंटा खड़ा होना पड़ जाता है तो इस लाइन में नया क्या है ?
और अब याद करता हूँ ताजा हादसा जो jio सिम के लिये हुआ घंटों लाइन में लगते थे और कई बार तो अपना नम्बर आने से पहले ही सिम ख़त्म ?
जब हम बचपन से ही लाइन में लगते आये है तो इतना हंगामा क्यों ? दोस्तो हमें घबराने की कोई ज़रूरत नही है हमारा तो जन्म ही ऐसी मातृभूमि पर हुआ जहाँ बड़ी से बड़ी मुसीबतों को लोग हँसते हँसते सह लेते है तो ये तो समस्या ही क्या है ? इस समस्या को त्योहार की तरह मनाये और आनँद ले ।
सहमत है ?
किसी को ठेस पहुँची हो तो अग्रिम क्षमा
संजय किरमारा "उज्ज्वल "
रंग बिरंगे नोट
नज़र पड़ती है जब भी
बाजार में चल रहे
रंग बिरंगे नोटो पर
या फ़िर नज़र पड़ती है
अलग अलग सिक्कों पर
तब मन में
सिर्फ एक सवाल उठता है
कि कैसा रुप है
या कैसा रंग है
इस बाजार का
जो हर पल एक अलग रंग
या अलग चेहरे के साथ
नज़र आता है
या फ़िर उठता है सवाल मन में
मनुष्यों की जरूरतें बिकती हैं
न जाने कितने चेहरों से
या फ़िर बिक जाते हैं भगवान खुद
या हमारे महापुरुष बिक जाते हैं
किसी न किसी नोट या
सिक्के पर छपकर
सिर्फ मनुष्य की ज़रूरत पूरा करने
पर अंत में दिखते हैं जब
धुंधले पड़े नोटो पर
महापुरुषों के चेहरे या
किन्हीं घिसे सिक्कों पर
महात्माओं या देवी देवताओं के चेहरे
तब उठते हैं सवाल मन में लाखों
झंझोड़ कर रख देते हैं मन को
कि जब घिस गये महापुरुष और सिक्के
और धुंधले पड़ गये महात्मा
ज़रूरत पूरा करते - करते
इस दुनियादारी की
तो क्या औकात हैं "उज्ज्वल "तेरी
जो तू कर पायें जरूरतें पूरी
किसी की इस दुनियादारी में
संजय किरमारा "उज्ज्वल "
लड़ता रह राही तू ,इस उलझे हुए संसार में
नही मिलने वाली कोई मंजिल एक बार में
कश्ती है तेरी और तुझे ही चलानी ये अब
नही तो दुनियाँ डुबो देगी इसे मँझदार में
चलते रहना अकेले अनजान से रास्तों पर
तभी चमक सकता है तेरा नाम अखबार में
ले लो फैंसला जो भी है लेना तुझे आज ही
मत गँवा जिंदगी तेरी इस सोच विचार में
रह लेना चाहे तू कितना भी खुश अकेले
पर असली खुशियाँ तो मिलेंगी परिवार में
चमकते रहना सदा तू ईमानदारी के सहारे
सौदा न करना उज्ज्वल झूठ के बाजार में
माँ
1
ममता की मूर्त है वो
प्यार का भरा भंडार है
नाजुक सी होने पर भी
वो ही सम्पूर्ण संसार है
बन सकती है कठोर ये
पर ममता से लाचार है
हंसमुख सा तेरा चेहरा
हर ख़ुशी ये का द्वार है
न करें तेरा सम्मान गर
तो जीवन ही बेकार है
सारा दिन करती काम
पर दिखती नही हार है
तेरे ही कारण सफल हूँ
सफलता का आधार है
कर लो इसकी सेवा गर
तो हर स्वप्न साकार है
कर सको इसकी पूजा
धाम यहां सब चार है
उज्ज्वल तुझ पर बस
इसका ही अधिकार है
2
है उसमें इतनी अलौकिक शक्ति
जो तुम्हे हर ख़ुशी दिला सकती है
कैसी भी बंजर जमी मिले उसको
उसमें भी वो फूल खिला सकती है
है इतनी दरियादिल और दिलेर
छाती से अपनी दूध पिला सकती है
है बहुत ज्यादा कोमल और शांत
पर दुःख में वो तिलमिला सकती है
रहती है हमेशा मुस्कराती हुई पर
नाराजगी में दुनियाँ हिला सकती है
करते रहना उसकी सेवा "उज्ज्वल
हर मंज़िल से तुझे मिला सकती है
3
मैंने देखा एक ऐसा मूर्ख भी
जिसने भगवान को ढूँढ़ने
के लिये माँ को बिलखते छोड़ दिया
कोन बताएँ उस नादां को
कि जल्दी कामयाबी के चक्कर में
उसने स्वर्ग की जो सीढ़ी थी
उसको ही रूला रुला के तोड़ दिया
4
वो पढ़ते रहे वेदों को
वो रटते रहे गीता को
मन की शांति के लिये
घर की समृद्धि के लिये
और एक मैं अनपढ़ था
जो बस दो बार
माँ का
नाम जपकर
जन्नत पा गया
और
करके सेवा
अपनी माँ की
इस दुनियाँ पर छा गया
1.
पानी सा निर्मल है वो
और पर्वत सा कठोर
करता सारा दिन काम
नही करता कोई शोर
खुद के सपने छोड़कर
धूप आँधी में दौड़कर
हमे सफल बनाने वो
लगा है जी तोड़कर
लगा रहता हमारे लिये
दिखता नही कभी बोर
पानी सा .................
सुख सभी वो त्यागकर
दिन रात भाग भागकर
सुलाता है चैन से हमें
रात अँधेरी जागकर
सही आये नींद हमें
ध्यान रखें वो चहुंओर
पानी सा .................
टूट गया हमें पढाने को
रुकगया हमें बढ़ाने को
बन गया खुद सीढी वो
हमे मंज़िल चढ़ाने को
थी नही हिम्मत उसमे
पर लगाया सदा जोर
पानी सा .................
सादगी से उसके काम
नही लिया कोई इनाम
कर देना "उज्ज्वल तू
उसका ऊँचा अब नाम
भटका सदा तेरे लिये
न ठिकाना न कोई ठौर
पानी सा .................
पानी सा निर्मल है वो
और पर्वत सा कठोर
करता सारा दिन काम
नही करता कोई शोर
2
कर्म भूमि पर सदा खुद को तपाया
कर करके त्याग मजबूत बनाया
निभाई जिम्मेदारियां उसने इतनी
आंसू कभी कोई आँख में न आया
3.
किसी भी कामयाबी के लिये यदि भगवान के बाद किसी की ज़रूरत होती है तो वो है पिता का हाथ, जो कंधे पर टिका हुआ हरपल कहता है बेटा डर मत,बस आगे बढ़ ! मैं साथ हूँ तेरे तेरी मुश्किलो को हटाने के लिये !
4.
देखते है लोग माँ की ममता इस दुनियाँ में सदा ही
पर पिता की कोमलता जिम्मेदारियों तले दब जाती है
लोग देख लेते है सब कुछ दूरबीनों में झाँक झाँककर
पता नही क्यों पिता की कुर्बानी नज़र नही आती है
आज तन्हाई की महाफिल जमी है
इसलिये शायद आँखों में नमी है
ज़रूरत है जिसकी सबसे ज्यादा
उसका पास न होना आज कमी है
नही है कोई वश उसपे मेरा कोई
तभी तो किये हुए थोड़ी नरमी है
सूना सा लगता सवेरा और संध्या
तन्हाई में ऐसा लगना लाज़मी है
मिलने वाली है मंज़िल "उज्ज्वल "
फ़िर क्यों मन में ये गहमागहमी है
कितना अजीब दस्तूर है
इस दुनियादारी का
हम जिसे
पढ़ते,
समझते
और सुनते रहे
कि ये दुनियाँ गोल हैं !
हमने गुजार दी
आधी जिंदगी सिर्फ
दूसरों की कमियां निकालने में,
दूसरों की बुराइयां गिनाने में,
और दूसरों को सताने में
लगे रहे दूसरों को
दोस्त देने में
सारी शाबासी खुद लेने में
पर ये क्या
सब झूठ निकला,
निकला एक कागजी अफ़साना
देखा उसे जब
दिल खोल के,
कुछ सच्चाई बोल के,
अपने गुणों अवगुणो को तौल के
तब जाके,
यह महसूस हुआ कि
ये दुनियाँ गोल ही नही
बल्कि अच्छी भी है
और बहुत खूबसूरत भी है
अपना ग्रुप
कौन रहेगा किस समूह में
सब मन ही मन में रट रहे थे
थे सब बैचेन यहाँ क्योंकि
सब चार ग्रूप्स में बँट रहे थे
किसको पता था कि
इंद्राज चुपचाप गाँधी बन जायेगा
सोचा था क्या सूरज ने
बुलबुल पांडे बन लाठी दिखायेगा
सोचा था क्या मेघना ने कि
अनुराधा की सहेली बन जायेगी
क्या पता था कुसुम को कि
वो नेता की सेक्रेटरी बन जायेगी
क्या पता था कि अनुराधा भी
स्टेज पर थप्पड़ चलायेंगी
सोचा था किसी ने कि
शीलू न्यूज रिपोर्टर बन जायेगी
इन्द्र कभी भिखारी बनेगा
या पहली बार कविता सुनायेगा
क्या पता था मुझ जैसा नादां
यहाँ लुकिंग अराउंड का लीडर बन जायेगा
सबने अपनी अपनी भूमिका
अपने ही अंदाज़ में निभाई
बन गया मजबूत ग्रूप ये
क्योंकि नेहा भी इसमें चली आई
वो सात दिन
किसी कोने में है मेथ मेजिक
तो किसी कोने में है लुकिंग अराउंड
क्या उत्सव है आवडी में आज
हर कोने से आ रहा है अजीब साउंड
कुछ कोनो में चल रहा है फोन
तो कुछ बैठे है बेचारे मौन
कुछ लगते है शरीफ बड़े
तो कुछ लगते है खानदानी डॉन
किसी को यहाँ की हवा भा रही है
किसी को अपने घर की याद आ रही है
कुछ है नादान मुझ से बेचारे
जिन्हे सुबह योगा की चिंता खा रही है
खाना खाकर सब परेशां लग रहे हैं
बारह बजने को हैं पर सब जग रहे हैं
सुबह ही भाग जाये यहाँ से
कुछ के चेहरे तो ऐसे लग रहे हैं
माणिक ने सबकी आँखो पर पट्टी बाँधी
कोई बनेगा भिखारी यहाँ कोई बनेगा गाँधी
कोई बनेगा अँगरेज़,कोई भेंस,कोई पांडे
सन्नाटा होगा कभी, तो कभी हँसी की आँधी
शब्द हैं सबके मन पर जल्दी ये दिन कट जाये
वापिस सब अपने घरो की और बढ़ जाये
पर मानो या न मानो, है सचाई यहीं संजू
इसी कारण सब एक दूजे निकट आये
नेक राह चलना
आसान नही थी राह इस दुनियादारी में कभी
मिली है ये मंज़िल चलके कितने तूफानों पर
खूब तपाया है इस लोहे को सोना बनाने को
कैसे बेच दूं अब इसे मैं मिट्टी की दुकानों पर
जलाया है इसे सच्चाई की भट्टी में बहुत
कैसे सौदा कर दूं इसका झूठ के फ़सानों पर
बनाना पड़ा था भीष्म खुद को इसके लिये
सुलाना पड़ा था खुद को अर्जुन के बाणों पर
अथक प्रयास कर बनाया सफलता का पर्वत
अब कैसे बहाऊं मिट्टी सा नदी के मुहानों पर
प्यार,प्रेम, भाईचारा ,सौहार्द कितना फैलाया
अब कैसे कुर्बान कर दूं नफ़रत के गानों पर
माना मरता जा रहा इंसान और इंसानियत
चमक रहा है झूठ और फरेब आसमानों पर
चमकते रहना कामयाबी की राह पर उज्ज्वल
न आना कभी तू झूठ फरेबो के निशानों पर
गुमनाम चेहरा
गुमनाम सा चेहरा हूँ अभी तक यहाँ
तभी तो किसी को भी मैं न दिखता हूँ
नादां सा हूँ इस दुनियाँ में अभी तक
तभी तो किसी के सामने न टिकता हूँ
सीखा इस दुनियादारी से बहुत कुछ
तभी सिर्फ कड़वी बातें ही लिखता हूँ
नही दिखी रचनाओं में गहराई कभी
तभी तो सदा अधमोल ही बिकता हूँ
नही दिखा पाता हूँ आँखों के आँसू
तभी तो बस शब्दों से मैं बिलखता हूँ
एक तू ही तो है इस भटके का सहारा
तभी तो सिर्फ तेरी और ही खिंचता हूँ
तू ही है "उज्ज्वल " सब कुछ मेरा
तभी तो सिर्फ तेरे लिये ही लिखता हूँ
संजू किरमारा "उज्ज्वल "
यात्रा वृतांत :- त्रिवेन्द्रम
दिनांक 12-3-16 , 13-03-16
लिखा है किताबों में कश्मीर के बारे में कि,
धरती पर स्वर्ग यदि कहीँ है
तो वह यहीं है यहीं है
पर मेरे विचार से,
स्वर्ग तो शायद वहीँ है
पर देवता तुल्य इंसान बसते और कहीँ है !
जी हाँ ये वो बातें है जो मैंने अपनी त्रिवेन्द्रम यात्रा पर महसुस की ! कई दिन से लगातार बुलावे आ रहे थे यहाँ की यात्रा करने के लिये मेरे मित्रों मनदीप और अनूप के ! और अंत में भगवान ने मुझे ये मौका भी दे दिया ! और मैं सवार हो गया बस में त्रिवेन्द्रम के लिये ! बस कानो में ये शब्द गूँज रहे थे -
जो लगातार फोन पर सुनते थे
" अरे क्या हाल है किरमारा ?"
"आने का क्या हुआ ?"
"कब आ रहा है भाई ?"
ये शब्द थे हमारे प्रिय कवि मित्र अनूप भारतीय के !
इसके बाद दूसरे शब्द -
"राम -राम मास्टर जी "
" आन की कहवे था, के होया ?"
"आजै यार "
ये शब्द थे मेरे भाई मंदीप के जो सी आई एस एफ़
में कार्यरत है !
इन्ही शब्दों के सहारे सफर सुहाना कट रहा था और कल्पनाएं चरम पर थी !
कैसा होगा वो स्थान ?
कैसा है कोवलम बीच ?
क्या है पद्मनाभ मंदिर में ?
और भी न जाने क्या क्या ?
सुबह बस आठ बजे त्रिवेन्द्रम पहुँचने वाली थी और मैं सो रहा था हसीन सपनो में !
साढ़े पाँच अचानक फोन बजा !देखा तो मंदीप का फोन था ! वो ही प्रश्न 😆
कितने बजे पहुँच रहा है ?
मंदीप से बात ख़त्म ही ना हुई कि अनूप का फोन आ गया !
भाई पल्लीपुरम उतर जाना ! नहा लेना फ़िर चलेंगे !और अनूप ने पल्लीपुरम ही उतार लिया !
अरे ये क्या ?
इतना हँसता खेलता परिवार ?
अनूप ने भी क्या दुनियाँ बसाई है ?
घर से हजारों किलोमीटर दूर ?
एक बहुत ही ही शानदार परिवार जिस्में अनूप भाई ,राजेंद्र भाई,मास्टर जी, कपिल भाई और एक वैज्ञानिक का परिवार और उनकी प्यारी सी सृष्टि जिसको देखने मात्र से सारी थकान दूर हो जाए ! सबका एक दूजे के प्रति इतना प्रेम ! अवर्णनीय ?
सभी बेडमिन्टन खेलने चले गये! तब तक मैं नहा धोकर फ़िर से तरोताजा हो गया ! खेलने के बाद हम सब नाश्ते के लिये द आर्याज होटल गये और हमारा नाश्ता किया !
और उसके बाद शुरू हो गया जिंदगी का एक और अविस्मरणीय दिन जो अनूप और मंदीप ने बनाया !
मैं और अनूप दुपहिया वाहन से पद्मनाथ मंदिर गये, तब तक मंदीप भी वहाँ पहुँच गया ! हमने मंदिर में भगवान के दर्शन किये और कोवलम बीच के लिये रवाना हो गये !
कितना सुंदर समुन्द्रतट !
देखते ही देखते हम तीनों पानी में उतर गये और लगभग दो तीन घंटे तक मस्ती करते रहे ! और काफ़ी फोटो लिये !
फ़िर हम तीनों वहाँ से CISF केम्पस की और चल पड़े जहाँ मंदीप ने दोपहर के खाने की बहूत ही सुंदर व्यवस्था कर रखी थी ! नहाने के बाद में हमने खाना खाया और एक घंटे आराम किया और मंदीप के साथ बचपन की यादें ताजा की ! घर का बना गोंद खाके और मंदीप के द्वारा बनाया केले का जूस पीकर पेट लगभग फटने वाला ही था ! शाम चार बजे मंदीप से वहाँ से निकलने की अनुमति ली जो काफ़ी मिन्नतों के बाद मिली !
उसके बाद बिग बाजार से कुछ खरीददारी की और वापिस पल्लीपुरम आ गये ! यहाँ पहुँचकर कुछ देर आराम किया और फ़िर शुरू हो गयी काव्यशाला जो की लगभग दो घंटे तक चली तक तक खाना तैयार हो गया और सबने खाना खाया ! रात बारह एक बजे तक बातें चलती रही और फ़िर सो गये ! और एक मनमोहक चीज़ राजेंद्र भाई की बनाई हुई चाय !तेरह तारीख को शाम को वापिस लौटना इसलिए हमने आराम ही किया !
और अंत में वो समय आ ही गया जब सबको अलविदा कहना था !शाम चार बजे मैं वहाँ से निकल पड़ा ! सच में ये एक बहुत ही अकल्पनीय यात्रा थी जो अनूप, मंदीप और उनके मित्रों "जो अब मेरे मित्र भी है " ने मिलकर मेरी इस यात्रा को अवर्णनीय, अविश्वसनीय और अतुलनीय बना दिया ! तो धन्यवाद मित्रों अब कलम को यहीं रोकता हूँ क्योंकि इस पूरी यात्रा के उल्लास, खुशी का वर्णन तो शायद वेदव्यास भी न कर पाये!
यात्रा वृतांत :- मेसूर एक बार फ़िर
कुछ भी लिखने से पहले मैं एक अनुभव सांझा करना चाहूंगा जो मैंने कई संगठनो में कार्य करते हुए महसुश किया है कि जब भी किसी कर्मचारी को किसी ट्रेनिंग या कार्यशाला में जाने को कहा जाता है उसके घर अनेक समस्याएँ उत्पन हो जाती है जैसे कई बार उसकी तबियत अचानक खराब हो जाती है है,कई बार उसके घर में अचानक कोई बीमार हो जाता है, कई बार कोई गेस्ट आ जाते हैं और कई बार उसे बार जाना पड़ जाता है ! शायद आप भाव समझ गये होंगे ?
अंत में संगठन फ़िर तलाशता है किसी सुखी इंसान को जिसका कोई घर ना हो, जिसका कोई अपना न है यानि कोई ऐसा कर्मचारी जो अपने परिवार से दूर रहता हो और कोई बहाना मारने की स्तिथि में ही ना हो या फ़िर वो अविवाहित हो !
खैर छोड़िये इन बातों को ऐसा ही कुछ मेरे विद्यालय में हुआ ! ब्रिटिश कौंसिल द्वारा एक शिक्षा पद्धति को समृद्ध करने हेतु एक दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया जाना था और मेरे विद्यालय से हम दो अध्यापकों मेरा और श्री के मधु का नाम भेज दिया गया !
और सताईस जनवरी को मैं और श्री मधु हम दो सुबह छह बजे घर से कोईम्बटूर के लिये निकल पड़े जहाँ से हमें साढ़े सात बजे मैसूर की बस पकडनी थी जिसकी व्यवस्था ब्रिटिश कौंसिल ने ही की थी !
रास्ते ने न जाने कितने प्रश्न मन में हलचल कर रहे थे -
ये दो दिन कैसे कटेंगे ?
कैसी वर्कशॉप होगी ?
कैसा खाना मिलेगा ?
कैसी रहने की व्यवस्था होगी ?
कोन कोन मित्र मिलेंगे ?
और भी न जाने क्या क्या ?
पर ये क्या ? जैसे ही हम मेसूर पहुँचने वाले थे कि एक कॉल हमारे पास आती है !
आप श्री संजय जी बोल रहे है ?
क्या आप वर्कशॉप अटेंड करने वाले है ?
आप कितनी देर में मेसूर पहुँचने वाले हैं ?
फ़िर पता चला ये एक टेक्सी चालक की कॉल थी और वो मेसूर बस अड्डे पर हमें फॉर्चून होटल ले जाने का इंतजार कर रहा था !
और वह हमें फॉर्चून होटल ले गया !
अहा ! क्या सुंदर होटल था ?
होटल फॉर्चून ?
एक चार सितारा होटल !
मन में एक सेलेब्रिटी वाली फीलिंग आ गयी !
सच में मैंने पहली बार ऐसे होटल में प्रवेश किया था ! इससे पहले तो ऐसा टीवी पर ही देखा था ! हमने हमारा रजिस्ट्रेशन करवाया और अपने कमरे में चले गये !
कहते हैं कि कुछ लोग मिलते हैं बड़े सौभाग्य से और हाँ वहाँ हमें हमारे मित्र प्रवीन कादियान मिल गये !
सबसे पहले हमने स्वीमिंग पूल में नहाने का आनँद लिया जिसका प्रवीन भाई ने बहुत ही अच्छा फोटो लिया !
फ़िर तो एक के बाद एक ? जिनका नाम सुना था वो साक्षात ही मुझे दर्शन देते गये ! पवन जी , नितिन जी , संदीप जी और अनेक मित्र !
पर दो सदस्य और मिले हमारे मित्र राकेश भारद्वाज और पियूष जिनका मैंने पहले नाम नही सुना था और उनके नाम के साथ मैं कोई सम्मानजक शब्द जी या सर नही लगाऊँगा क्योंकि दोस्त सम्मानजक नही कमीने होते हैं !
सुबह एक और शैतान जयदीप आ पहुँचा !
बस एक की ही कमी थी और मिल गये पंच प्यारे :-
प्रवीन,राकेश,पियूष,जयदीप और संजय !
कोन कहता है स्वार्थी है ये दुनियाँ
मिलेंगे नेक लोग तुम्हे हजारों
क्यों बँधे हो घर में ही तुम
बाहर निकल देखो तो यारो
उसके बाद तो शुरू हो गयी वर्कशॉप और मस्ती !
हमारी जो दो अध्यापिकाए श्रीमती अनुराधा जी और संजना जी ! एक बहुत ही रोचक ढंग से उन्होने वर्कशॉप का संचालन किया और न जाने कितनी महत्वपूर्ण बातें और अध्यापन तकनीकें उन्होने हमें बताई !जो निश्चित ही भविष्य में हमारे लिये और बच्चों के लिये हितकारी होंगी ! हर कोई विषय पर चर्चा लेक्चर से नही एक्टिविटी से की गयी जिससे दो दिन की वर्कशॉप में एक मिनट भी कोई बोरियत नही हुई ! और ये दो दिन का समय हमें कम लगने लगा !
पहले दिन दोपहर बाद हम संग्रहालय गये जहाँ हमने मेसूर के इतिहास के बारे में और भारत के बारे में बहुत कुछ सीखने को मिला ! शाम को हम सब प्रशिक्षु मिलकर चामुंडादेवी मंदिर गये और रात को प्रवीन भाई ने हमारे लिये भांजा जन्म लेने की खुशी में चाय पार्टी का आयोजन किया !
अगले दिन फ़िर वर्कशॉप पर ये क्या कैसे ये दो दिन ख़त्म हो गये पता ही नही चला और हमें शाम को पाँच बजे हमें अनमने मन से विदा कर दिया ! शायद ही कोई ऐसा होगा जिसका मन उस जगह को छोड़ने का किया हो !
अंत में सिर्फ ये ही कह सकता हूँ :-
कहते हैं लोग दिल टूट जाते हैं धोखों से,
पर लगता हैं मुझे मौके भी मिलते हैं धोखों से