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Monday, April 18, 2016

हर रोज़  दुनियाँ  बदलने  की सोच लेता हूँ मैं
पर  अब  तक क्यों खुद को न बदल पाया हूँ
बन चुका हूँ  कितना नादां मैं ,किसको बदलू
रोशनी है  दुनियाँ मैं तो मात्र  इसकी छाया हूँ

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