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Monday, September 28, 2015

खुश हूं  मैं  या  उदास  ये देखने
मेरे आँसुओं पर  कभी  न जाना
क्यों भीगो देतेआँखें खुशी में भी
जान  न पाया अब तक  जमाना

न जाने कहाँ रहते हैं छिपे ये
बिन बुलाये  ही  आ जाते हैं
जाना चाहो दूर जीतना इनसे
उतना  ही पास इनको पाते हैं
कहाँ  है घर -परिवार  इनका,
नही मिला  अब तक ठिकाना
क्यों भीगो देते हैं  ..............

आ जाते  हैं ये  कभी -कभी
किसी  किसी  की  चाहत में
नही  रुकते  एक  पल भी ये
खुशी,सुकून,ग़म या राहत में
दर्दों से लगाव है इनका बड़ा
चाहे वो अपना हो या बेगाना
क्यों भीगो देते हैं ...............

देते रहते  हैं साथ सदा ये हमारा
आना हो किसी का या हो जुदाई
नही रोक  पाता इनको आने  से
मिलन हो किसी से या हो विदाई
मजे लेते रहते  हर माहौल के ये
करते दुखी ,कभी  करते सुहाना
क्यों भीगो देते हैं ..................

मंजिल  या मिलन  हो किसी का
आँखो को आकर ये  चूम लेते हैं
चाहे बिछुड़न हो किसी से तो भी
आँखो में  नाचकर झूम ही लेते हैं
मुश्किल हैं पार पाना इनसे "संजू "
चाहे ढूँढ़ ले  चाहे कोई भी बहाना
क्यों भीगो देते आँखें खुशी में भी
जान न पाया अब तक ये जमाना
खुश हूं  मैं या हूं  उदास  ये देखने
मेरे  आँसुओं पर  कभी  न  जाना

Saturday, September 26, 2015

घर से ये जो मेरी  दूरी है
खुशी नही ये मजबूरी है

निकला था घर से तन्हा
पाने चैन और राहत को
भटक रहा हूं दर - बदर
पाने को अपनी चाहत को
हुआ हूं परेशान बहुत पर
हसरतें अभी सभी  अधूरी है
खुशी नही ये .............

न जाने कितने शख्सो से
पूरा दिन मैं मिलता हूं
आचार विचार देखकर इनके
कभी मुरझाता,कभी खिलता हूं
चाहता हूं बसना एक जगह
पर भटकना भी शायद ज़रूरी है
खुशी नही ये ................

खा खाकर ठोकरें समय की
अब ये समझ आने लगा है
परेशां है दुनियाँ में हर कोई
यहाँ सब नज़र आने लगा है
नही मानुंगा हार अंत तक
जीतना भी बहुत ज़रूरी है
खुशी नही ये .................

पता नही क्यों अपनी जिंदगी
भटककर यूं ही खो रहा हूं
कभी तोड़ता  हूं फूल मालाये
कभी पत्ते पत्ते पिरो रहा हूं
चल पड़ अब घर की और "संजू "
हसरतें होती नही सभी पूरी है
खुशी नही है ये मजबूरी है
घर से ये जो मेरी दूरी है
खुशी नही है ये मजबूरी है

Thursday, September 24, 2015

लो जी हमारा भी एक साल पूरा के वी में

न जाने कितनों ने  सताया ,
न जाने कितनों ने रखा ख्याल ,
कभी खुश हुए,कभी मायूस ,
और कट गया एक साल !

अगस्त में खुशी आई ,
खूब बंटीं घर मिठाई ,
आखिर एक दिन आँखे भर आई ,
होने वाले थी घर सर जुदाई ,
जो रहे थे अगस्त से टाल !
कभी खुश हुए .............

बनी टिकट तेइस की ,
और छोड़ दिया घर ,
आये दोस्त दिल्ली तक ,
और चले गये विदा  कर ,
लड़ना था अब बिन ढाल !
कभी खुश हुए ............

पहुँचा दिया फ्लाइट ने ,
दो घंटे में कोईम्बटूर ,
जल्दी थी पहुँचने की ,
और आना था सूलूर ,
कटना था यही भविष्य  काल !
कभी खुश हुए ............

ज्वाइन करते ही यहाँ ,
सपना साकार हो गया ,
छोड़ दिया जब अपनो को ,
तो ये ही घर बार हो गया ,
जिसमे चलना था अपनी चाल !
कभी खुश हुए ............

शुरू मे तो कुछ भी ,
नही मुझे भाता था ,
सुबह से शाम हरपल ,
बस घर ही याद आता था ,
हो गई थी जिंदगी बेहाल !
कभी खुश हुए .........

धीरे धीरे सब पुरानी ,
बातों को भूलने लगा ,
मिल गये दोस्त नए और
दिल अब खुलने लगा ,
पूछने लगे अब सब हालचाल !
कभी खुश हुए...........

कभी ट्रेनिंग आ जाती थी ,
तो कभी आ जाती छुट्टियाँ ,
चिंता रहित हो जाता मन ,
और खूब होती मस्तियां ,
मिले दोस्त इतने, हो गये मालामाल !
कभी खुश हुए ..........

फ़िर तो इसी तरह दिन ,
जैसे तैसे कटने लगे ,
पूरे  हो रहे थे सपने ,
पर अपनो से दूर हटने लगे ,
चली जिंदगी कच्छुआ चाल !
कभी खुश हुए ..........

समझा लिया है मन को अब ,
सफर है ये काटना पड़ेगा ,
है जो दुःख,दर्द या खुशी ,
सबकुछ यही बाँटना पड़ेगा ,
काट ले संजू कुछ और साल ,
कभी खुश हुए,कभी मायूस ,
और कट गया एक साल !

रहने लगा हूं खामोश मैं
आके मुझे दुलार दे
नही लगता मन अब मेरा
मुझे अब अपना प्यार दे
मँझदार में है नैया मेरी
इसे अब कर पार दे
लड़ूं मन की उलझनों से
ऐसा कोई हथियार दे
भटक जाता है मन कई बार
इसे थोड़ी डाँट फटकार दे
बैठ जाऊँ मैं शांति से
चाहे एक दो थप्पड़ ही मार दे
थक गया हूं काम करते करते
मुझे वो बचपन वाला रविवार दे
नही भाता खाना होटल का
अपने हाथो का मिर्ची अचार दे
लगा दो मुझे रास्ते पे फ़िर
चाहे सुना दो चार दे
बन गया हूं भटकता पंछी
बैठने को कोई आधार दे
खूब तोड़ मरोड़ लिया है अब
मुझे कोई स्थाई आकार दे
बहुत देख लिये सपने "संजू "
कर किसी एक को साकार दे

Tuesday, September 15, 2015

हिन्द देश है तन हमारा
हिन्दी हमारी जान है
इसी से धड़कता है ये दिल
इसी से हमारा मान है !

रखती है हमें बांधकर
एक सुगंधित माला में
सीखते हैं हम सब कुछ
इसी की पाठशाला में
बढ़ता इससे बहुत ज्ञान है
इसी से.. . . . . . . . . . . .

रहती खुद टूटती फूटती
पर सबको जोड़ जाती है
पूर्व - पश्चिम,उत्तर - दक्षिण
इसलिये सबको ये भाती है
लाखों गुणों की ये खान है
इसी से . . . . . . . . . . . .

आओ हम  सब मिलकर
कुछ इसका कर्ज चुकाए
करें समृद्ध इसे इतना
और अपना फर्ज चुकाए
जिससे भारतवर्ष  महान है
इसी से . . . . . . . . . . . .

नही होगा अकेले - अकेले
सबको मिलकर कुछ करना है
जोडो " संजू " साथ सबको
प्रचार - प्रसार इसका करना है
बढ़ाना इसका फ़िर से मान है
इसी से . . . . . . . . . . . . .  .

हिन्द देश हमारी पहचान है
हिन्दी हमारी जान है
इसी से धड़कता है ये दिल
इसी से हमारा मान है

Saturday, September 12, 2015

सीख लो दोस्तों मिलकर रहना,
है अनजान परदेश ये,
आज नही तो कल यहां से चले जाना है !

ख़ुदगर्ज है ज़माना ये,
यहां कैसे कैसे लोग आते है !
बताकर खुद को सूरज वो,
बादलों के पीछे छुप जाते है !
था हँसना साथ सबके पर
सीख लिया क्यों अकेले आँसू बहाना है !
है अनजान परदेश ये . . . . . .

सुनो ए भले इंसानों,
कभी इंसानियत का भी ख्याल करो !
आये हो बड़ी दूर से,
यहां सबका मान  सम्मान  करो !
क्यों सीख लिया है तुमने
निशाना किसी एक को बनाना है
है अनजान परदेश ये . . . . .

नही है घर यहां तुम्हारा,
है छोटा सा घर तुम्हे यहां सजाना !
सब है अपने ही यहां,
छोड़ दो तुम समझना सबको यहां बेगाना !
" संजू " क्यों सीख लिया है तुमने
किसी और का  मजाक बनाना है
है अनजान परदेश ये,
आज नही तो कल यहां से चले जाना है!