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Friday, March 4, 2016

यात्रा वृतांत :- मेसूर एक बार फ़िर

कुछ भी लिखने से पहले मैं एक अनुभव सांझा करना चाहूंगा जो मैंने कई संगठनो में कार्य करते हुए महसुश किया है कि जब भी किसी कर्मचारी को किसी ट्रेनिंग या कार्यशाला में जाने को कहा जाता है उसके घर अनेक समस्याएँ उत्पन हो जाती है जैसे कई बार उसकी तबियत अचानक खराब हो जाती है है,कई बार उसके घर में अचानक कोई बीमार हो जाता है, कई बार कोई गेस्ट आ जाते हैं और कई बार उसे बार जाना पड़ जाता है ! शायद आप भाव समझ गये होंगे ?
अंत में संगठन फ़िर तलाशता है किसी सुखी इंसान को जिसका कोई घर ना हो, जिसका कोई अपना न है यानि कोई ऐसा कर्मचारी जो अपने परिवार से दूर रहता हो और कोई बहाना मारने की स्तिथि में ही ना हो या फ़िर वो अविवाहित हो !

खैर छोड़िये इन बातों को ऐसा ही कुछ मेरे विद्यालय में हुआ ! ब्रिटिश कौंसिल द्वारा एक शिक्षा पद्धति को समृद्ध करने हेतु एक दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया जाना था और मेरे विद्यालय से हम दो अध्यापकों मेरा और श्री के मधु का नाम भेज दिया गया !
और सताईस जनवरी को मैं और श्री मधु हम दो सुबह छह बजे घर से कोईम्बटूर के लिये निकल पड़े जहाँ से हमें साढ़े सात बजे मैसूर की बस पकडनी थी जिसकी व्यवस्था ब्रिटिश कौंसिल ने ही की थी !
रास्ते ने न जाने कितने प्रश्न मन में हलचल कर रहे थे -
ये दो दिन कैसे कटेंगे ?
कैसी वर्कशॉप होगी ?
कैसा खाना मिलेगा ?
कैसी रहने की व्यवस्था होगी ?
  कोन कोन मित्र मिलेंगे ?
और भी न जाने क्या क्या ?

पर ये क्या ? जैसे ही हम मेसूर पहुँचने वाले थे कि एक कॉल हमारे पास आती है !

आप श्री संजय जी बोल रहे है ?
क्या आप वर्कशॉप अटेंड करने वाले है ?
आप कितनी देर में मेसूर पहुँचने वाले हैं ?

फ़िर पता चला ये एक टेक्सी चालक की कॉल थी और वो मेसूर बस अड्डे पर हमें फॉर्चून होटल ले जाने का इंतजार कर रहा था !

और वह हमें फॉर्चून होटल ले गया !
अहा ! क्या सुंदर होटल था ?
होटल फॉर्चून ?
एक चार सितारा होटल !
मन में एक सेलेब्रिटी वाली फीलिंग आ गयी !
सच में मैंने पहली बार ऐसे होटल में प्रवेश किया था ! इससे पहले तो ऐसा टीवी पर ही देखा था ! हमने हमारा रजिस्ट्रेशन करवाया और अपने कमरे में चले गये !

कहते हैं कि कुछ लोग मिलते हैं बड़े सौभाग्य से और हाँ वहाँ हमें हमारे मित्र प्रवीन कादियान मिल गये !
सबसे पहले हमने स्वीमिंग पूल में नहाने का आनँद लिया जिसका प्रवीन भाई ने बहुत ही अच्छा फोटो लिया !
फ़िर तो एक के बाद एक ? जिनका नाम सुना था वो साक्षात ही मुझे दर्शन देते गये ! पवन जी , नितिन जी , संदीप जी और अनेक मित्र !
पर दो सदस्य और मिले हमारे मित्र राकेश भारद्वाज और पियूष जिनका मैंने पहले नाम नही सुना था और उनके नाम के साथ मैं कोई सम्मानजक शब्द जी या सर नही लगाऊँगा क्योंकि दोस्त सम्मानजक नही कमीने होते हैं !
सुबह एक और शैतान जयदीप आ पहुँचा !
बस एक की ही कमी थी और मिल गये पंच प्यारे :-
प्रवीन,राकेश,पियूष,जयदीप और संजय !

कोन कहता है स्वार्थी है ये दुनियाँ
मिलेंगे नेक लोग तुम्हे हजारों
क्यों बँधे हो घर में ही तुम
बाहर निकल देखो तो यारो

उसके बाद तो शुरू हो गयी वर्कशॉप और मस्ती !
हमारी जो दो अध्यापिकाए श्रीमती अनुराधा जी और संजना जी ! एक बहुत ही रोचक ढंग से उन्होने वर्कशॉप का संचालन किया और न जाने कितनी महत्वपूर्ण बातें और अध्यापन तकनीकें उन्होने हमें बताई !जो निश्चित ही भविष्य में हमारे लिये और बच्चों के लिये हितकारी होंगी ! हर कोई विषय पर चर्चा लेक्चर से नही एक्टिविटी से की गयी जिससे दो दिन की वर्कशॉप में एक मिनट भी कोई बोरियत नही हुई ! और ये दो दिन का समय हमें कम लगने लगा !
पहले दिन दोपहर बाद हम संग्रहालय गये जहाँ हमने मेसूर के इतिहास के बारे में और भारत के बारे में बहुत कुछ सीखने को मिला ! शाम को हम सब प्रशिक्षु मिलकर चामुंडादेवी मंदिर गये और रात को प्रवीन भाई ने हमारे लिये भांजा जन्म लेने की खुशी में चाय पार्टी का आयोजन किया !

अगले दिन फ़िर वर्कशॉप पर ये क्या कैसे ये दो दिन ख़त्म हो गये पता ही नही चला और हमें शाम को पाँच बजे हमें अनमने मन से विदा कर दिया ! शायद ही कोई ऐसा होगा जिसका मन उस जगह को छोड़ने का किया हो !

अंत में सिर्फ ये ही कह सकता हूँ :-
कहते हैं लोग दिल टूट जाते हैं धोखों से,
पर लगता हैं मुझे मौके भी मिलते हैं धोखों से

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