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Wednesday, March 30, 2016

नेक राह चलना

आसान  नही थी राह इस दुनियादारी में कभी
मिली है ये  मंज़िल चलके  कितने तूफानों पर

खूब तपाया है इस  लोहे  को सोना बनाने को
कैसे  बेच दूं  अब इसे मैं मिट्टी की दुकानों पर

जलाया  है  इसे  सच्चाई  की  भट्टी   में बहुत
कैसे  सौदा कर दूं इसका झूठ के फ़सानों पर

बनाना  पड़ा  था  भीष्म  खुद को इसके लिये
सुलाना  पड़ा था खुद को अर्जुन के बाणों पर

अथक प्रयास  कर बनाया सफलता का पर्वत
अब  कैसे बहाऊं मिट्टी सा नदी के मुहानों पर

प्यार,प्रेम, भाईचारा ,सौहार्द  कितना  फैलाया
अब कैसे कुर्बान  कर दूं   नफ़रत के गानों पर

माना  मरता  जा  रहा  इंसान और इंसानियत
चमक रहा है  झूठ  और  फरेब आसमानों पर

चमकते रहना कामयाबी की राह पर उज्ज्वल 
न  आना  कभी  तू झूठ फरेबो के निशानों पर

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