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Wednesday, March 30, 2016

वो सात दिन

किसी कोने में है मेथ मेजिक
तो किसी कोने में है लुकिंग अराउंड
क्या उत्सव है आवडी में आज
हर कोने से आ रहा है अजीब साउंड

कुछ कोनो में चल रहा है फोन
तो कुछ बैठे है बेचारे मौन
कुछ लगते है शरीफ बड़े
तो कुछ लगते है खानदानी डॉन

किसी को यहाँ की हवा भा रही है
किसी को अपने घर की याद आ रही है
कुछ है नादान मुझ से बेचारे
जिन्हे सुबह योगा की चिंता खा रही है

खाना खाकर सब परेशां लग रहे हैं
बारह बजने को हैं पर सब जग रहे हैं
सुबह ही भाग जाये यहाँ से
कुछ के चेहरे तो ऐसे लग रहे हैं

माणिक ने सबकी आँखो पर पट्टी बाँधी
कोई बनेगा भिखारी यहाँ कोई बनेगा गाँधी
कोई बनेगा अँगरेज़,कोई भेंस,कोई पांडे
सन्नाटा होगा कभी, तो कभी हँसी की आँधी

शब्द हैं सबके मन पर जल्दी ये दिन कट जाये
वापिस सब अपने घरो की और बढ़ जाये
पर मानो या न मानो, है सचाई यहीं संजू
इसी कारण सब एक दूजे निकट आये

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