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Wednesday, March 30, 2016

आज तन्हाई की महाफिल जमी है
इसलिये  शायद  आँखों  में नमी है

ज़रूरत है  जिसकी  सबसे ज्यादा
उसका पास न होना आज कमी है

नही है कोई वश उसपे  मेरा  कोई
तभी तो किये हुए  थोड़ी  नरमी है

सूना सा  लगता सवेरा और संध्या
तन्हाई में ऐसा  लगना  लाज़मी है

मिलने वाली है मंज़िल "उज्ज्वल "
फ़िर क्यों मन में ये गहमागहमी है

कितना अजीब दस्तूर है
इस दुनियादारी का
हम जिसे
पढ़ते,
समझते
और सुनते रहे
कि ये दुनियाँ गोल हैं !

हमने गुजार दी
आधी जिंदगी सिर्फ
दूसरों की कमियां निकालने में,
दूसरों की बुराइयां गिनाने में,
और दूसरों को सताने में

लगे रहे दूसरों को
दोस्त देने में
सारी शाबासी खुद लेने में

पर ये क्या
सब झूठ निकला,
निकला  एक कागजी अफ़साना

देखा उसे जब
दिल खोल के,
कुछ सच्चाई  बोल के,
अपने गुणों अवगुणो को तौल के

तब जाके,
यह महसूस हुआ कि

ये दुनियाँ गोल ही नही
बल्कि अच्छी भी है
और बहुत खूबसूरत भी है

अपना ग्रुप

कौन रहेगा किस समूह में
सब मन ही मन में रट रहे थे
थे सब बैचेन यहाँ क्योंकि
सब चार ग्रूप्स में बँट रहे थे

किसको पता था कि 
इंद्राज चुपचाप गाँधी बन जायेगा
सोचा था क्या सूरज ने
बुलबुल पांडे बन लाठी दिखायेगा

सोचा था क्या मेघना ने कि
अनुराधा की सहेली बन जायेगी
क्या पता था कुसुम को कि
वो नेता की सेक्रेटरी बन जायेगी

क्या पता था कि अनुराधा भी
स्टेज पर थप्पड़ चलायेंगी
सोचा था किसी ने कि
शीलू न्यूज रिपोर्टर बन जायेगी

इन्द्र कभी भिखारी बनेगा
या पहली बार कविता सुनायेगा
क्या पता था मुझ जैसा नादां
यहाँ लुकिंग अराउंड का लीडर बन जायेगा

सबने अपनी अपनी भूमिका
अपने ही अंदाज़ में निभाई
बन गया मजबूत ग्रूप ये
क्योंकि नेहा भी इसमें चली आई

वो सात दिन

किसी कोने में है मेथ मेजिक
तो किसी कोने में है लुकिंग अराउंड
क्या उत्सव है आवडी में आज
हर कोने से आ रहा है अजीब साउंड

कुछ कोनो में चल रहा है फोन
तो कुछ बैठे है बेचारे मौन
कुछ लगते है शरीफ बड़े
तो कुछ लगते है खानदानी डॉन

किसी को यहाँ की हवा भा रही है
किसी को अपने घर की याद आ रही है
कुछ है नादान मुझ से बेचारे
जिन्हे सुबह योगा की चिंता खा रही है

खाना खाकर सब परेशां लग रहे हैं
बारह बजने को हैं पर सब जग रहे हैं
सुबह ही भाग जाये यहाँ से
कुछ के चेहरे तो ऐसे लग रहे हैं

माणिक ने सबकी आँखो पर पट्टी बाँधी
कोई बनेगा भिखारी यहाँ कोई बनेगा गाँधी
कोई बनेगा अँगरेज़,कोई भेंस,कोई पांडे
सन्नाटा होगा कभी, तो कभी हँसी की आँधी

शब्द हैं सबके मन पर जल्दी ये दिन कट जाये
वापिस सब अपने घरो की और बढ़ जाये
पर मानो या न मानो, है सचाई यहीं संजू
इसी कारण सब एक दूजे निकट आये

नेक राह चलना

आसान  नही थी राह इस दुनियादारी में कभी
मिली है ये  मंज़िल चलके  कितने तूफानों पर

खूब तपाया है इस  लोहे  को सोना बनाने को
कैसे  बेच दूं  अब इसे मैं मिट्टी की दुकानों पर

जलाया  है  इसे  सच्चाई  की  भट्टी   में बहुत
कैसे  सौदा कर दूं इसका झूठ के फ़सानों पर

बनाना  पड़ा  था  भीष्म  खुद को इसके लिये
सुलाना  पड़ा था खुद को अर्जुन के बाणों पर

अथक प्रयास  कर बनाया सफलता का पर्वत
अब  कैसे बहाऊं मिट्टी सा नदी के मुहानों पर

प्यार,प्रेम, भाईचारा ,सौहार्द  कितना  फैलाया
अब कैसे कुर्बान  कर दूं   नफ़रत के गानों पर

माना  मरता  जा  रहा  इंसान और इंसानियत
चमक रहा है  झूठ  और  फरेब आसमानों पर

चमकते रहना कामयाबी की राह पर उज्ज्वल 
न  आना  कभी  तू झूठ फरेबो के निशानों पर

ए  मेरे  यार तेरी  याद सताती है
तेरी   अदाएं क्यों इतना भाती है

करता हूँ कोशिश कुछ करने की
पर बीच तेरी याद   आ जाती है

नींद   न  आने  देती है आँखों में
पर पल हर जगह नज़र आती है

काटे नही कटता ये वीरान  दिन
और  रात बैठे बैठे कट जाती है

कुछ तो जादू हैं तुझमे उज्ज्वल
जो  तेरी  याद  इतना सुहाती  है

Saturday, March 19, 2016

गुमनाम चेहरा

गुमनाम  सा  चेहरा  हूँ अभी तक यहाँ
तभी तो  किसी को भी मैं न दिखता हूँ

नादां   सा हूँ  इस दुनियाँ में  अभी तक
तभी तो   किसी के सामने न टिकता हूँ

सीखा  इस   दुनियादारी से बहुत  कुछ
तभी सिर्फ कड़वी  बातें  ही लिखता हूँ

नही  दिखी  रचनाओं  में  गहराई कभी
तभी  तो   सदा अधमोल ही बिकता हूँ

नही   दिखा  पाता हूँ  आँखों   के आँसू
तभी    तो बस शब्दों से मैं बिलखता हूँ

एक  तू ही तो  है  इस भटके का सहारा
तभी तो  सिर्फ तेरी और   ही खिंचता हूँ

तू   ही   है "उज्ज्वल "  सब   कुछ  मेरा
तभी  तो  सिर्फ तेरे  लिये  ही लिखता हूँ

संजू किरमारा "उज्ज्वल "

Friday, March 18, 2016

यात्रा वृतांत :- त्रिवेन्द्रम
दिनांक 12-3-16 , 13-03-16

लिखा है किताबों में कश्मीर के बारे में  कि,
धरती पर स्वर्ग यदि कहीँ है
तो वह यहीं है यहीं है
पर मेरे विचार से,
स्वर्ग तो शायद वहीँ है
पर देवता तुल्य इंसान बसते और कहीँ है !

जी हाँ ये वो बातें है जो मैंने अपनी त्रिवेन्द्रम यात्रा पर महसुस की ! कई दिन से लगातार बुलावे आ रहे थे यहाँ की यात्रा करने के लिये मेरे मित्रों मनदीप और अनूप के ! और अंत में भगवान ने मुझे ये मौका भी दे दिया ! और मैं सवार हो गया बस में त्रिवेन्द्रम के लिये ! बस कानो में ये शब्द गूँज रहे थे -
जो लगातार फोन पर सुनते थे
" अरे क्या हाल है किरमारा ?"
"आने का क्या हुआ ?"
"कब आ रहा है भाई ?"

ये शब्द थे हमारे प्रिय कवि मित्र अनूप भारतीय के !

इसके बाद दूसरे शब्द -
"राम -राम मास्टर जी "
" आन की कहवे था, के होया ?"
"आजै यार "

ये शब्द थे मेरे भाई मंदीप के जो  सी आई एस एफ़
में कार्यरत है !

इन्ही शब्दों के सहारे सफर सुहाना कट रहा था और कल्पनाएं चरम पर थी !

कैसा होगा वो स्थान ?
कैसा है कोवलम बीच ?
क्या है पद्मनाभ मंदिर में ?
और भी न जाने क्या क्या ?

सुबह बस आठ बजे त्रिवेन्द्रम पहुँचने वाली थी और मैं सो रहा था हसीन सपनो में !
साढ़े पाँच अचानक फोन बजा !देखा तो मंदीप का फोन था ! वो ही प्रश्न 😆
कितने बजे पहुँच रहा है ?
मंदीप से बात ख़त्म ही ना हुई कि अनूप का फोन आ गया !
भाई पल्लीपुरम उतर जाना ! नहा लेना फ़िर चलेंगे !और अनूप ने पल्लीपुरम ही उतार लिया !
अरे ये क्या ?
इतना हँसता खेलता परिवार ?
अनूप ने भी क्या दुनियाँ बसाई है ?
घर से हजारों किलोमीटर दूर ?
एक बहुत ही ही शानदार परिवार जिस्में अनूप भाई ,राजेंद्र भाई,मास्टर जी, कपिल भाई  और एक वैज्ञानिक का परिवार और उनकी प्यारी सी सृष्टि जिसको देखने मात्र से सारी थकान दूर हो जाए ! सबका एक दूजे के प्रति इतना प्रेम ! अवर्णनीय ?
सभी बेडमिन्टन खेलने चले गये! तब तक मैं नहा धोकर फ़िर से तरोताजा हो गया ! खेलने के बाद हम सब नाश्ते के लिये द आर्याज होटल गये और हमारा नाश्ता किया !
और उसके बाद शुरू हो गया जिंदगी का एक और अविस्मरणीय दिन जो अनूप और मंदीप ने बनाया !
मैं और अनूप दुपहिया वाहन से पद्मनाथ मंदिर गये, तब तक मंदीप भी वहाँ पहुँच गया ! हमने मंदिर में भगवान के दर्शन किये और कोवलम बीच के लिये रवाना हो गये !
कितना सुंदर समुन्द्रतट !
देखते ही देखते हम तीनों पानी में उतर गये और लगभग दो तीन घंटे तक मस्ती करते रहे ! और काफ़ी फोटो लिये !
फ़िर हम तीनों वहाँ से  CISF केम्पस की और चल पड़े जहाँ मंदीप ने दोपहर के खाने की बहूत ही सुंदर व्यवस्था कर रखी थी ! नहाने के बाद में हमने खाना खाया और एक घंटे आराम किया और मंदीप के साथ बचपन की यादें ताजा की ! घर का बना गोंद खाके  और मंदीप के द्वारा बनाया केले का जूस पीकर पेट लगभग फटने वाला ही था ! शाम चार बजे मंदीप से वहाँ से निकलने की अनुमति ली जो काफ़ी मिन्नतों के बाद मिली !
उसके बाद बिग बाजार से कुछ खरीददारी की और वापिस पल्लीपुरम आ गये ! यहाँ पहुँचकर कुछ देर आराम किया और फ़िर शुरू हो गयी काव्यशाला जो की लगभग दो घंटे तक चली तक तक खाना तैयार हो गया और सबने खाना खाया ! रात बारह एक बजे तक बातें चलती रही और फ़िर सो गये ! और एक मनमोहक चीज़ राजेंद्र भाई की बनाई हुई चाय !तेरह तारीख को शाम को वापिस लौटना इसलिए हमने आराम ही किया !

और अंत में वो समय आ ही गया जब सबको अलविदा कहना था !शाम चार बजे मैं वहाँ से निकल पड़ा ! सच में ये एक बहुत ही अकल्पनीय यात्रा थी जो अनूप, मंदीप और उनके मित्रों "जो अब मेरे मित्र भी है " ने मिलकर मेरी इस यात्रा को अवर्णनीय, अविश्वसनीय और अतुलनीय बना दिया ! तो धन्यवाद मित्रों अब कलम को यहीं रोकता हूँ क्योंकि इस पूरी यात्रा के उल्लास, खुशी का वर्णन तो शायद वेदव्यास भी न कर पाये!

बदले बदले देश के हालात हो गये
झगड़े गली गली बिन बात हो गये

अब बिन  बात पहुँच जाती है ठेस
इतने  कोमल  जो जज्बात हो गये

नही  बढ़ना  चाहते प्रगति पथ पर
पुराने लोगों   के ख्यालात  हो गये

डर लगता है  छोटी  छोटी बातों से
इतने बड़े  दिलों में आघात हो गये

करवटों से  कटती रातें "उज्ज्वल "
ताजगी  रहित  अब प्रभात हो गये

Friday, March 4, 2016

यात्रा वृतांत :- मेसूर एक बार फ़िर

कुछ भी लिखने से पहले मैं एक अनुभव सांझा करना चाहूंगा जो मैंने कई संगठनो में कार्य करते हुए महसुश किया है कि जब भी किसी कर्मचारी को किसी ट्रेनिंग या कार्यशाला में जाने को कहा जाता है उसके घर अनेक समस्याएँ उत्पन हो जाती है जैसे कई बार उसकी तबियत अचानक खराब हो जाती है है,कई बार उसके घर में अचानक कोई बीमार हो जाता है, कई बार कोई गेस्ट आ जाते हैं और कई बार उसे बार जाना पड़ जाता है ! शायद आप भाव समझ गये होंगे ?
अंत में संगठन फ़िर तलाशता है किसी सुखी इंसान को जिसका कोई घर ना हो, जिसका कोई अपना न है यानि कोई ऐसा कर्मचारी जो अपने परिवार से दूर रहता हो और कोई बहाना मारने की स्तिथि में ही ना हो या फ़िर वो अविवाहित हो !

खैर छोड़िये इन बातों को ऐसा ही कुछ मेरे विद्यालय में हुआ ! ब्रिटिश कौंसिल द्वारा एक शिक्षा पद्धति को समृद्ध करने हेतु एक दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया जाना था और मेरे विद्यालय से हम दो अध्यापकों मेरा और श्री के मधु का नाम भेज दिया गया !
और सताईस जनवरी को मैं और श्री मधु हम दो सुबह छह बजे घर से कोईम्बटूर के लिये निकल पड़े जहाँ से हमें साढ़े सात बजे मैसूर की बस पकडनी थी जिसकी व्यवस्था ब्रिटिश कौंसिल ने ही की थी !
रास्ते ने न जाने कितने प्रश्न मन में हलचल कर रहे थे -
ये दो दिन कैसे कटेंगे ?
कैसी वर्कशॉप होगी ?
कैसा खाना मिलेगा ?
कैसी रहने की व्यवस्था होगी ?
  कोन कोन मित्र मिलेंगे ?
और भी न जाने क्या क्या ?

पर ये क्या ? जैसे ही हम मेसूर पहुँचने वाले थे कि एक कॉल हमारे पास आती है !

आप श्री संजय जी बोल रहे है ?
क्या आप वर्कशॉप अटेंड करने वाले है ?
आप कितनी देर में मेसूर पहुँचने वाले हैं ?

फ़िर पता चला ये एक टेक्सी चालक की कॉल थी और वो मेसूर बस अड्डे पर हमें फॉर्चून होटल ले जाने का इंतजार कर रहा था !

और वह हमें फॉर्चून होटल ले गया !
अहा ! क्या सुंदर होटल था ?
होटल फॉर्चून ?
एक चार सितारा होटल !
मन में एक सेलेब्रिटी वाली फीलिंग आ गयी !
सच में मैंने पहली बार ऐसे होटल में प्रवेश किया था ! इससे पहले तो ऐसा टीवी पर ही देखा था ! हमने हमारा रजिस्ट्रेशन करवाया और अपने कमरे में चले गये !

कहते हैं कि कुछ लोग मिलते हैं बड़े सौभाग्य से और हाँ वहाँ हमें हमारे मित्र प्रवीन कादियान मिल गये !
सबसे पहले हमने स्वीमिंग पूल में नहाने का आनँद लिया जिसका प्रवीन भाई ने बहुत ही अच्छा फोटो लिया !
फ़िर तो एक के बाद एक ? जिनका नाम सुना था वो साक्षात ही मुझे दर्शन देते गये ! पवन जी , नितिन जी , संदीप जी और अनेक मित्र !
पर दो सदस्य और मिले हमारे मित्र राकेश भारद्वाज और पियूष जिनका मैंने पहले नाम नही सुना था और उनके नाम के साथ मैं कोई सम्मानजक शब्द जी या सर नही लगाऊँगा क्योंकि दोस्त सम्मानजक नही कमीने होते हैं !
सुबह एक और शैतान जयदीप आ पहुँचा !
बस एक की ही कमी थी और मिल गये पंच प्यारे :-
प्रवीन,राकेश,पियूष,जयदीप और संजय !

कोन कहता है स्वार्थी है ये दुनियाँ
मिलेंगे नेक लोग तुम्हे हजारों
क्यों बँधे हो घर में ही तुम
बाहर निकल देखो तो यारो

उसके बाद तो शुरू हो गयी वर्कशॉप और मस्ती !
हमारी जो दो अध्यापिकाए श्रीमती अनुराधा जी और संजना जी ! एक बहुत ही रोचक ढंग से उन्होने वर्कशॉप का संचालन किया और न जाने कितनी महत्वपूर्ण बातें और अध्यापन तकनीकें उन्होने हमें बताई !जो निश्चित ही भविष्य में हमारे लिये और बच्चों के लिये हितकारी होंगी ! हर कोई विषय पर चर्चा लेक्चर से नही एक्टिविटी से की गयी जिससे दो दिन की वर्कशॉप में एक मिनट भी कोई बोरियत नही हुई ! और ये दो दिन का समय हमें कम लगने लगा !
पहले दिन दोपहर बाद हम संग्रहालय गये जहाँ हमने मेसूर के इतिहास के बारे में और भारत के बारे में बहुत कुछ सीखने को मिला ! शाम को हम सब प्रशिक्षु मिलकर चामुंडादेवी मंदिर गये और रात को प्रवीन भाई ने हमारे लिये भांजा जन्म लेने की खुशी में चाय पार्टी का आयोजन किया !

अगले दिन फ़िर वर्कशॉप पर ये क्या कैसे ये दो दिन ख़त्म हो गये पता ही नही चला और हमें शाम को पाँच बजे हमें अनमने मन से विदा कर दिया ! शायद ही कोई ऐसा होगा जिसका मन उस जगह को छोड़ने का किया हो !

अंत में सिर्फ ये ही कह सकता हूँ :-
कहते हैं लोग दिल टूट जाते हैं धोखों से,
पर लगता हैं मुझे मौके भी मिलते हैं धोखों से