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Wednesday, July 15, 2015

याद आता है समय अब वो
जब बिन दोस्त शाम नही कटती थी
था छोटा सा मैं
पर दुनियॉ मुझसे भी छोटी लगती थी

वो स्कूल का मस्ती भरा  रस्ता,
था कच्चा और हालत थी खस्ता,
मोबाइल शॉप,कैफे और बार वहां
जहां न जाने कितनी चाट,कुल्फी और जलेबियो की दुकानें सजती थी
था मैं छोटा सा.......

कभी कबड्डी,खो खो,लुका छिपाई,
तो कभी हाथ मे पतंग की डोर
साइकिल रेस, चोर सिपाही
रहती थी खुशियां हरपल चहुंओर
पर दोस्ती बिल्कुल सच्ची होती थी
था  मैं छोटा सा....

रहता था इंतजार रविवार का और फ़िर सुबह घर से निकल जाना
खेलना दोस्तो संग  खिलखिला कर,
थककर शाम या देर रात घर आना
अब तो दोस्तों संग बस किसी चौराहे या बाजार मे हाय हेलो रहती है
पहले होती खूब मस्ती थी  
था मैं छोटा सा....

बदल गयी है अब तो दुनिया सारी
बदल गये है सारे नाते रिश्ते
सुबह से शाम तक भागमभाग और न जाने कितनी चुकानी पड़ती है किस्तें
कहां गये  वो दोस्त जिनके बिना कोई भी महाफिल नही सजती थी
था मैं छोटा सा......

शायद सिमट रहा है वक्त अब,हर पल कुछ न कुछ बदल रहा है
है तो दोस्त कई अब इस ज़माने मे वो न जाने वो दोस्ती कहां है
कितनी भी कोशिश करले " संजू " इस जिंदगी को जीने की,पर असली जिंदगी तो तब ही कटती थी

था छोटा सा मैं
पर दुनियॉ मुझसे भी छोटी लगती थी
याद आता है समय अब वो
जब बिन दोस्त शाम नही कटती थी

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