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Monday, August 10, 2015

चाहता था रहना तन्हा मैं,
इसीलिये तो जाके दूर  सोया था
नही पसंद थी भीड़ दुनियादारी की,
मैं अपनी ही दुनिया मे खोया था

कोई करें समय खराब कीमती
इसलिये अकेला ही रहता था
जी ले  जिंदगी सबके संग,
वक्त ये ही सलाह देता था
खिसक गया वक्त और अपने
फ़िर  फूट फूट मैं रोया था
चाहता था रहना....

अनजाने में न जाने,
क्या क्या कर गया
कटनी थी जिंदगी जिन संग,
उन्ही को दुर मैं कर गया
काट रहा हूं फसल उन गमों की
जिनको हाथों से अपने बोया था
चाहता था रहना..

रहा भटकता दिन भरऔर न जाने
कितनी रातें काट दी जाग जागकर
खो बैठा एक एक कर सब अपने
काम काज  के पीछे भाग भागकर
कर दी कुर्बान जिंदगी सपनो पर
जिनको मैने दिल में संजोया था
चाहता था रहना....

बाकी बचा ही क्या है अब,
चल पड़ पंछी तू अपने घर
बड़ी बेदर्द  है  दुनिया ये,बचा ले
इससे अपनी आजादी और पर
भूल जा उन ख्यालों को ' संजू '
जिनमे तू रहता खोया था

चाहता था रहना तन्हा मैं
इसीलिये तो दुर जाके सोया था
नही पसंद थी भीड़ दुनियादारी की
तभी मैं अपनी ही दुनिया में खोया था

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