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Monday, April 18, 2016

हर रोज़  दुनियाँ  बदलने  की सोच लेता हूँ मैं
पर  अब  तक क्यों खुद को न बदल पाया हूँ
बन चुका हूँ  कितना नादां मैं ,किसको बदलू
रोशनी है  दुनियाँ मैं तो मात्र  इसकी छाया हूँ

Wednesday, April 13, 2016

माँ
1
ममता   की  मूर्त है  वो
प्यार का  भरा भंडार है

नाजुक सी होने पर भी
वो ही सम्पूर्ण  संसार है

बन  सकती है कठोर ये
पर  ममता से लाचार है

हंसमुख  सा तेरा चेहरा
हर  ख़ुशी ये का द्वार है

न करें तेरा  सम्मान गर
तो  जीवन  ही बेकार है

सारा   दिन करती काम
पर  दिखती नही हार है

तेरे ही कारण सफल हूँ
सफलता  का आधार है

कर लो इसकी सेवा गर
तो हर  स्वप्न  साकार है

कर सको  इसकी पूजा
धाम  यहां  सब  चार है

उज्ज्वल  तुझ  पर बस
इसका  ही  अधिकार है

2

है   उसमें इतनी  अलौकिक  शक्ति
जो तुम्हे  हर ख़ुशी  दिला सकती है

कैसी भी   बंजर जमी मिले उसको
उसमें  भी वो फूल खिला सकती है

है    इतनी   दरियादिल  और दिलेर
छाती से अपनी दूध पिला सकती है

है बहुत  ज्यादा   कोमल और शांत
पर दुःख में वो तिलमिला सकती है

रहती है हमेशा  मुस्कराती  हुई  पर
नाराजगी में दुनियाँ हिला सकती है

करते रहना उसकी सेवा "उज्ज्वल
हर मंज़िल से तुझे मिला  सकती है
3

मैंने देखा एक ऐसा मूर्ख भी

जिसने भगवान को ढूँढ़ने
के लिये माँ को बिलखते छोड़ दिया
कोन बताएँ उस नादां को
कि जल्दी कामयाबी के चक्कर में
उसने स्वर्ग की जो सीढ़ी थी
उसको ही रूला रुला के तोड़ दिया

4

वो  पढ़ते   रहे वेदों को
वो  रटते   रहे गीता को
मन की  शांति  के लिये
घर की समृद्धि के लिये

और एक मैं अनपढ़ था
जो बस दो  बार
माँ का
नाम जपकर
जन्नत पा गया
और
करके  सेवा
अपनी  माँ  की
इस दुनियाँ पर छा गया

1.

पानी  सा   निर्मल है वो
और   पर्वत  सा कठोर
करता  सारा दिन काम
नही  करता   कोई शोर

खुद  के सपने छोड़कर
धूप  आँधी में  दौड़कर
हमे  सफल  बनाने  वो
लगा   है  जी  तोड़कर
लगा  रहता हमारे लिये
दिखता नही कभी बोर
पानी सा .................

सुख सभी वो त्यागकर
दिन रात भाग भागकर
सुलाता   है चैन से हमें
रात   अँधेरी   जागकर
सही   आये  नींद   हमें
ध्यान  रखें वो चहुंओर
पानी सा .................

टूट गया हमें पढाने को
रुकगया हमें बढ़ाने को
बन गया खुद सीढी वो
हमे मंज़िल चढ़ाने  को
थी नही  हिम्मत उसमे
पर   लगाया सदा जोर
पानी सा .................

सादगी  से उसके काम
नही  लिया कोई इनाम
कर  देना "उज्ज्वल तू
उसका ऊँचा अब नाम
भटका  सदा  तेरे लिये
न ठिकाना न कोई ठौर
पानी सा .................

पानी   सा निर्मल है वो
और  पर्वत  सा  कठोर
करता  सारा दिन काम
नही   करता  कोई शोर


2
कर्म भूमि पर सदा खुद को तपाया
कर    करके त्याग  मजबूत बनाया
निभाई   जिम्मेदारियां उसने इतनी
आंसू  कभी कोई आँख में न आया

3.

किसी भी कामयाबी के लिये यदि भगवान के बाद किसी की ज़रूरत होती है तो वो है पिता का हाथ, जो कंधे पर टिका हुआ हरपल कहता है बेटा डर मत,बस आगे बढ़ ! मैं साथ हूँ तेरे तेरी मुश्किलो को हटाने के लिये !

4.

देखते है लोग  माँ  की  ममता   इस दुनियाँ में सदा ही
पर पिता की कोमलता जिम्मेदारियों तले दब जाती है
लोग देख लेते है सब कुछ  दूरबीनों में झाँक झाँककर
पता नही   क्यों पिता  की कुर्बानी  नज़र नही आती है