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लेडी फिंगर एक अध्यापक के मन में एक दिन हरी सब्जी खाने का ख्याल आया तो उसने कक्षा में से एक कमजोर से बच्चे को बुलाया हुआ कुछ यूँ अध्य...
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चाहता था रहना तन्हा मैं, इसीलिये तो जाके दूर सोया था नही पसंद थी भीड़ दुनियादारी की, मैं अपनी ही दुनिया मे खोया था कोई करें समय खराब ...
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1. पानी सा निर्मल है वो और पर्वत सा कठोर करता सारा दिन काम नही करता कोई शोर खुद के सपने छोड़कर धूप आँधी में दौड़कर हमे ...
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अब तो बता दे जिंदगी __________________ बता दें जिंदगी तू, कितना और मुझे भटकाएगी सताया है तूने खूब कितना और अब सताएगी कितने तूने खेल...
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हर रोज़ दुनियाँ बदलने की सोच लेता हूँ मैं पर अब तक क्यों खुद को न बदल पाया हूँ बन चुका हूँ कितना नादां मैं ,किसको बदलू रोशनी है दु...
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याद आता है समय अब वो जब बिन दोस्त शाम नही कटती थी था छोटा सा मैं पर दुनियॉ मुझसे भी छोटी लगती थी वो स्कूल का मस्ती भरा रस्ता, था कच्चा...
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वो सात दिन किसी कोने में है मेथ मेजिक तो किसी कोने में है लुकिंग अराउंड क्या उत्सव है आवडी में आज हर कोने से आ रहा है अजीब साउंड कुछ को...
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हिन्द देश है तन हमारा हिन्दी हमारी जान है इसी से धड़कता है ये दिल इसी से हमारा मान है ! रखती है हमें बांधकर एक सुगंधित माला में सीखते ...
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रंग बिरंगे नोट
नज़र पड़ती है जब भी
बाजार में चल रहे
रंग बिरंगे नोटो पर
या फ़िर नज़र पड़ती है
अलग अलग सिक्कों पर
तब मन में
सिर्फ एक सवाल उठता है
कि कैसा रुप है
या कैसा रंग है
इस बाजार का
जो हर पल एक अलग रंग
या अलग चेहरे के साथ
नज़र आता है
या फ़िर उठता है सवाल मन में
मनुष्यों की जरूरतें बिकती हैं
न जाने कितने चेहरों से
या फ़िर बिक जाते हैं भगवान खुद
या हमारे महापुरुष बिक जाते हैं
किसी न किसी नोट या
सिक्के पर छपकर
सिर्फ मनुष्य की ज़रूरत पूरा करने
पर अंत में दिखते हैं जब
धुंधले पड़े नोटो पर
महापुरुषों के चेहरे या
किन्हीं घिसे सिक्कों पर
महात्माओं या देवी देवताओं के चेहरे
तब उठते हैं सवाल मन में लाखों
झंझोड़ कर रख देते हैं मन को
कि जब घिस गये महापुरुष और सिक्के
और धुंधले पड़ गये महात्मा
ज़रूरत पूरा करते - करते
इस दुनियादारी की
तो क्या औकात हैं "उज्ज्वल "तेरी
जो तू कर पायें जरूरतें पूरी
किसी की इस दुनियादारी में
संजय किरमारा "उज्ज्वल "