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Wednesday, February 7, 2018

चार  कामों  हम  थोड़े   क्या उलझ गये
तुम  ही  मुझको   बेपरवाह  समझ  गये

तुम ही तो मेरे  आदर्श   और   सहारा थे
फ़िर  तुम्हारी   नज़र  में क्यों आवारा थे

तेरे सपनों के लिये हम  दिनभर भागे थे
देने खुशियाँ सब तुम्हे रातों हम जागे थे

कुछ  कम  चीजों  की तुमको चाहत थी
शायद  इसी   बात की थोड़ी  राहत  थी

पर हम तेरे लिये कुछ  करना  चाहते थे
इसलिये तो खुदको सदा  ऐसा रखते थे

बस इन्ही चीजों की थोड़ी  परेशानी थी
कामयाबी की  रच रहे  नई  कहानी थी

माना  हर  बात हमको तुम्हे बतानी थी
पर किश्ती भीमंजिल तक पहुँचानी थी

पर शायद सोचता हूँ सब कुछ छोड़ दूँ
औरमुँह जिम्मेदारियों की और मोड़ लूँ

चाहूं आज मैं पास  तेरे आना
दे दे किस्मत तू  कोई  बहाना

हर पल तू  क्यों देती  मुझको
दर्द जुदाई का इक  अनजाना

कर यत्न तू   अब  मिलन का
छोड़ दे  अब  यूँ मुझे  सताना

आज ज़रूरत है  उसको मेरी
ज़रूरी है  पास  उसके जाना

जब  मैं  हूँ  सबकुछ  उसका
फ़िर क्यों  बना दिया  बेगाना

खास दिन है ये उसका आज
जो  मुझे साथ उसके मनाना

ए हवा तू ही दे दे साथ आज
पहुँचा दे मेरा खास नजराना

स्वीकार करो   शुभकामनाएँ
और देदो मुझको माफीनामा

जन्मदिवस मुबारक हो मेरे बिना

हमसे  मिलने की  हर   वजहें तुम
यूँ  किस्मत पर न  सब छोड़ा करो

कभी मिलने  की  सोचकर  क़दम
आशियाने की और भी मोड़ा करो

नही चाहते आना गर  दर पे हमारे
रास्तों  को  यूँ   बीच न छोड़ा करो

कभी आ जाना  यूँ टहलते टहलते
हम नही कहते की तुम  दौड़ा करो

बनाते है मुश्किल से  घर यादों का
साफ मना कर  उसे  न फोड़ा करो

मानाआना सम्भव नही तुम्हारा पर
हमारे रस्ते में तो न कोई रोड़ा करो

बड़ी मिन्नतोंसे करते हो कोई वादा
अपने किये वादे को  न तोड़ा करो

एक नये ठिकाने की ओर
उड़ ले पंछी अब तू
जितना नसीब था तेरा यहाँ
जितना वक्त था तेरा यहाँ
सब हुआ वो पूरा
रह गया हो चाहे
कोई काम तेरा अधूरा
तलाश कोई नया पेड़ अब तू
तलाश अब नया पेड़  अब तू

इस बगीचे में तो
कोई आकर बसेगा
सुनकर बाते तेरी कोई
तुझ पर खूब हँसेगा
पर क्या है उससे
फितरत है दुनियाँ की ये
जो गुण गाती है बस पास ही
पीछे से तोड़ती है ये विश्वास ही

पर घबराना मत तू कभी
तूने जो छोड़े है यहाँ निशाँ
वक्त लगेगा लोगों को
उनको बिल्कुल मिटाने में
जो मेहनत की थी तूने
उन निशानों को बनाने में

भूल जाना तू भी
इसको दूसरो की तरह
नये ठिकाने पर लग जाना
नए निशाने बनाने को
क्योंकि लोगों को जरूरत पड़ेगी
नए निशानों को मिटाने की
और कोई तो चीज रहनी चाहिये
तेरे जाने बाद मिटाने की

दिल  में तो  थी  बहुत  बातें  उनके
पर  न  जाने क्यों वो बता ना  सके

किस  बात  की  परवाह थी उनको
जो प्यार  हमसे वो  जता  ना  सके

शायद ख़त्म करना  चाहते  थे  दर्द
आगे चलकर जो हमें सता ना सके

जुदाई  का डर था या बदनामी का
तभी  कर  कोई वो  खता ना सके

मिल जाते किसी अनजाने मोड़ पे
ऐसा कोई  वो हमें दे  पता ना सके

दिल  में तो  थी  बहुत  बातें  उनके
पर  न  जाने क्यों वो बता ना  सके

मैं  नही  लिखता  आजकल  मेरी  तन्हाई लिखती है
उसकी यादों  के  किस्से उसकी  बेवफाई लिखती है

सोचता हूँ  कड़वी  घूँट  पी  जाऊँ  उसकी यादों  की
पर क्या करूँ यादों  को  उसकी  रुसवाई लिखती है

कैसे कह दूँ  हुआ  हमारा कत्ल  ए आम मुहब्बत  में
मुहब्बत की हर बात प्यार में हुई  लड़ाई लिखती  है

अब भूल तो जाऊँ रोकर  काटी उन  तन्हा रातों  को
उसकी खूबियाँ शाम उसके  साथ बिताई लिखती है

ठान लेता न  जाने  कितनी  बार  उसको भूलने  की
पर ये सब उसे न भूलने की  कसमें  खाई लिखती है

कई बार करता है  मन तोड़  दूँ  इस  कलम को अब
कलम का क्या ?ये तो दिल में  बात आई लिखती है

न जाने कितनी बार कोशिश की उससे दूर जाने की
पर उसकी हर दास्ताँ  उसकी  हुई विदाई लिखती है

संजय किरमारा ' उज्जवल '
6/2/18

छोड़  ख़ामोशी 
आज बोल ही पड़ा आखिर 
सूना पड़ा वो तालाब 
कहाँ रहते हो जनाब ? ? ?
आते नही हो छलाँग लगाने

कर के घरवालों से नये बहाने 
शाँत पड़े मेरे इस पानी में 
क्यूँ नही आते हो तुम नहाने ? ? ?

उछलता था मैं तो बस तेरे ही सहारे 
सूने पड़े रहते है अब मेरे ये किनारे 
खिल जाती थी बूँद बूँद मेरे पानी की 
कूदता था जब तू  यहाँ मस्ती  के मारे

सच बता तू किस दुनियाँ में खो गया ? 
जो बीज  यहाँ  सन्नाटे के तू बो गया 
किन जिम्मेदारियों तले दब गया ? ? ? 
कौनसे कोने में तू जाकर सो गया ? ? ?

याद करके दिन मेरे वो पुराने 
मैं लगा उस तालाब को बताने

गोते तो लगाता हूँ आजकल भी मैं 
पर लगाता हूँ जिम्मेदारियों के संसार में 
पानी की जगह खेलता हूँ कीचड़ से अब 
इस मक्कारी ओर धोखेबाज बाजार में

कूदता तो अब भी हूँ , 
खेलने नही 
पर अपने पैरों को बचाने 
जहाँ लगाते है ये लोग 
पल पल काटने के  निशाने

भूला नही हूँ तुझे 
जी तो अब भी मेरा , 
तेरे पास आने को करता है 
पर सच ये भी है मन मेरा 
तेरे किनारे बैठे मगरो से डरता है

छोड़ दे मुझको याद करना अब तू , 
मैने तो खुद को समझा लिया है 
तरसता है सुकून को पल पल मैं 
इतना खुद को उलझा दिया है

तू भी 
अब बच्चो का इँतज़ार करना छोड़ दे
वो आज भी खुश है 
वो आज भी गोते लगा रहे है 
वो आज भी मस्ती से नहा रहे है 
पर तुझमे नही , , , 
क्योंकि उनको तू छोटा लगता है
उनको  पाँच इंच के फोन में 
आजकल पूरा सागर दिखता है

कवि किरमारा 'उज्जवल  '
Tuesday, February 6, 2018