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Sunday, December 27, 2015

कुछ यादें कुछ बातें  कुछ  इरादे पीछे छोड़ चला
जिंदगी का  एक साल और हमसे मुंह मोड़ चला

कुछ हसीन  सपने दिखाकर
कुछ   नये   फूल  खिलाकर
कुछ  अंजानो  से  मिलाकर
कुछ  गहरी   ज़ड़े  हिलाकर
एक अनजाने  से  रास्ते  पर  खुद  वो दौड़ चला

कुछ  कामयाबी   हमें  देकर
कुछ  बदले हमसे  भी लेकर
कुछ ग़म वो ही खुद सहकर
कुछ खुद   तन्हा  सा रहकर
चंद खुशियाँ और ग़म दामन में हमारे जोड़ चला

अलग सा जोश हममें भरके
खूब  अच्छे  से  काम करके
किसी  बला  से  न वो डरके
हमको नेक रास्ते  पर करके
लगे रिश्तों पर ताले जो सबको ही वो तोड़ चला

सब नफ़रतें दिलों से मिटाके
सब   गलतफहमियां  हटाके
दिलों से दिल यूँ ही  मिलाके
फूल  खुशियों  के   खिलाके
करके हमसे  एक खुशनुमा - सा  गठजोड़ चल

कुछ  कलियाँ तो खिल गयी
कुछ  खुशियाँ तो मिल गयी
कुछ बातें तोसमा दिल गयी
कुछ  मंजिलें  तो मिल गयी
"संजू "कामयाबी के लिये  क्यों   वीरां रोड़ चला

कुछ यादें कुछ बातें  कुछ  इरादे पीछे छोड़ चला
जिंदगी का  एक साल और हमसे मुंह मोड़ चला

Thursday, December 17, 2015

ए मेरी  धरती , ए मेरे घर
अब  मुझको  तू  बुला ले
थक  चूका  हूँ बहुत अब
अपने आँचल में सुला ले

आता  है  याद  बहुत  तू
पूरा   ही  दिन  खलता है
मन  तेरे  विरह  में   अब
ये  सारा  दिन  जलता है
थी  जितनी  भी  खताये
सबको  तू  अब भुला ले
थक चुका ..............

नही   लगता अब  सफर
ये अब  पहले सा सुहाना
नही  दिखता  अपनापन
क्यूँ  लगता  सब बेगाना
देदो सजा चाहे कोई तुम
चाहे  पास बैठा रूला ले
थक चुका ...............

दूरियों  का  गड्डा अब तो
होता ही जा रहा है गहरा
चेहरे की इस मुस्कान पर
लग  चुका  है  एक पहरा
तोड़  दो  अब  पहरे सारे
बंधन  सारे  ये  धुला   ले
थक चुका ...............

ढूंढ़ता  ही रहता हूँ हरदम
घर आने का  कोई बहाना
चाहता  रहता   हूँ अब तो
हरपल  तेरे ही पास आना
भेजो  बुलावा कोई जल्दी
कहीं  "संजू "तुझे भुला ले
थक चुका ....................

ए   मेरी  धरती , ए मेरे घर
अब   मुझको   तू  बुला ले
थक   चूका   हूँ बहुत अब
अपने   आँचल में सुला ले

अब तो बता दे जिंदगी
__________________

बता  दें जिंदगी तू, कितना और मुझे भटकाएगी
सताया  है तूने  खूब कितना और अब सताएगी

कितने  तूने  खेले  खेल , छुड़ा  दिये सब अपने
बना बहाना सफलता का , तुड़ा दिये सब सपने
सूखी  होली सूखी दिवाली,सब सूखे लगे लगने
अब तो बता दें हमें , कितना और हमें रुलाएगी
बता दें जिंदगी ................

छूटे  दोस्त , खेल ,रिश्ते और छूट  गया घर बार
नही  था  कोई दोष में,पर करवा दिया तड़ीपार
भुला दिया गाँव मेरा और भुलवा दिया परिवार
दंड दिया खूब कितना वनवास और कटवाएगी
बता दे जिंदगी ...........

हँसाके थोड़ा  सा  मुझको कितना  रूला लिया
करके घर से दूर मुझको, सबसे तूने भुला दिया
देके चंद   खुशियाँ , हजारों गमों से मिला दिया
कब दूर होंगे ग़म ये  और खुशियाँ कब आयेंगी
बता दें जिंदगी ..............

छोड़ के जिद  अपनी, सुलह  अब मुझसे कर ले
हो गया हूँ परेशां  बहुत,अब तो आने मुझे घर दे
भूल जा खताए सब खुश रहने का कोई हुनर दे
कुछ कर संजू  तभी ये जिंदगी खुशियाँ लायेंगी
बता दे जिंदगी .............

बता  दें जिंदगी तू, कितना और मुझे भटकाएगी
सताया  है तूने  खूब कितना और अब सताएगी

बसने  लगी  बस्तियां  अलग, सब  साथ रह जाते  
छोटी - मोटी  मुशीबतों को,मिलकर हम सह जाते

चहुंओर फैलाकर भाईचारा,करते संग  सब गुजारा
बन एक दूजे का प्यारा, प्रेम की दरिया में बह जाते

सब गले लगके  मिलते, बगीचे के फूलों से खिलते
किसी के हिलाने से न हिलते, इकठ्ठे  यहाँ रह जाते

मानवता का पाठ पढाके,नेक रास्ते सबको चलाके
दूसरों  को  अपने साथ चलाके,बढ़ने की कह जाते

नफ़रत   को  मिटाके,अज्ञानता  का  अँधेरा हटाके
शिक्षा  की ज्योत ज़लाके,संजू   अलग सतह पाते

बसने  लगी  बस्तियां  अलग , सब साथ रह जाते  
छोटी -मोटी   मुशीबतों को,मिलकर हम सह जाते

हम तो ठहरे  आज़ाद पंछी
पहुँच जायेंगे अपने आशियाने
यूँ ही शाम  ढलते - ढलते

लक्ष्य ठहरा स्पष्ट हमारा
मिल जायेगी मंजिल हमें
यूँ ही यहाँ वहाँ चलते - चलते

कितनी टकरायेगी हमसे वो
थक जायेंगी सब मुश्किलें
राह में हमारे अड़ते - अड़ते

कितनी रोकेगी ये बाधायें
पार पा जायेंगे सबसे हम
बस यूँ ही हँसते - हँसते

मिलती है नाकामियां उन्हे
जो करते है हर काम
नाकामियों से डरते - डरते

नही है सहारे की कमी यहाँ
न जाने क्यों डरते है हम
विश्वास किसी पर करते - करते

थोड़ा सा क़दम बढ़ाओ
चलो मंजिल की और "संजू "
गले सबके यहाँ लगते - लगते

हम तो ठहरे  आज़ाद पंछी
पहुँच जायेंगे अपने आशियाने
यूँ ही  शाम  ढलते - ढलते

Monday, December 14, 2015

किसी उलझे लेखक की फरियाद कहानी
हुई बहुत तोड़ फोड़ कर आबाद   कहानी

न  जाने कितने लोगों का घर बसाकर ये
प्यार  बढाकर  हुई है खुद ईजाद कहानी

कितनों   के  सपनो  को हवा में  उड़ाकर
उनको करके आई है ऐसा बरबाद कहानी

दिल में  बसे लोगों को दिल  से  भुलाकर
तब जाकर आई है सबको ये याद कहानी

कर  जाती है  घर  दिलों में किसी  के गर
कर देती है अरमानों को  बरबाद कहानी

जिनका लहजा  होता है गर सीधा साधा
उनके लिये होती है खुली किताब कहानी

देता  है सजा वक्त ठोकर मार  - मारकर
उनको  तो  रहती है हरदम  याद कहानी

कितना वक्त का हँसाया / रूलाया होगा
"संजू " जिसने  की   है ये ईजाद कहानी

तब और अब

उसे पसंद था अकेलापन सदा
पर दोस्तों ने कभी अकेला न छोड़ा
आज चाहता है वो साथ सबका
पर हर कोई न जाने क्यों
अकेला ही छोड़ता जा रहा है

रहता था सारा दिन वो उछलता
पर मन उसका रहता था शांत
पर आज जब वो चाहता है शांति
तो न जाने क्यों ये मन उसका
किसी न किसी उधेड़बुन में रहता है

नही पसंद थी उसे घर की चाय
चाहा उसने सदा काफ़ी पीना
किसी बड़े से रेस्टोरेंट में
पर आज उसे याद आती है
वो चाय अकेले बैठे- बैठे
जब काफ़ी पी रहा है रेस्टोरेंट में

तब जल्दी रहती थी उसे
अपने ही दोस्तों को पछाड़कर
सबसे आगे निकलने की
पर आज जब वह निकल चुका है
सबको पीछे छोड़कर तो
याद आ रहे है वो पुराने दोस्त

तब आती थी नींद खराटेदार
पर मन नही करता था सोने को
पर आज जब करता है मन सोने को
तो न जाने ये नींद कहाँ चली गयी
इन कागज के टुकडों की चिंता
उसकी वो नींद छीन ले गयी

"संजू "छोड़ना चाहता था  बचपना
तलाश रहती थी कामयाबी की
पर आज जब मिल गयी है कामयाबी
तो मन रहता है उसका बेचैन
उसी पुराने बचपने को पाने को

Friday, December 4, 2015

चारों   और  पानी  ही पानी
चारों  और  हानि   ही हानि
चारों और अँधेरा ही अँधेरा
हो जाये  अब जल्दी सवेरा
चारों और  फैला  हाहाकार
राहत  उपायों   का इंतजार
मदद को  हर  कोई   तैयार
पर बाधा है मौसम की मार

आशा है  दिल   के कोने में
गंवाना नही हैं आँसु रोने में
कुछ  ही पल बाकी हैं  अब
ये मुशीबतो    कम  होने में
बहुत जल्द होगा यहाँ सवेरा
बीत  जायेंगी ये  अँधेरी रातें
फ़िर खिलखिलायेगी चेन्नई
फ़िर होगी  मस्ती  की  बातें
सब कुछ हो जायेगा सामान्य
सुधर  जायेंगी  सब हालात-ए