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Saturday, November 21, 2015

मुस्कराती दिखे   कलियाँ
लहराती  पेड़ों  की  डाली
हर  हरे   भरे खेत यहाँ के
दिखे  चहुंओर   हरियाली

रहते  लोग खुशहाल यहां
सब  मस्ती में नाचते गाते
नही है  यहाँ बैरभाव कोई
गहरे यहां सब  रिश्ते-नाते
जीने  का  अंदाज़ निराला
सबकी अदा यहां  निराली
हरे भरे ....................

है  रंग  बिरंगे  त्यौहार यहां
बैसाखी,संक्राति और तीज
मस्ती  रहती मेलों में  यहां
सावन आता  बड़ा लजीज
रंगो  बिरंगी यहां की  होली
रोशनी दीपों वाली दिवाली
हरे भरे ...................

खाना पीना  शाकाहारी  है
दूध दही छाछ वाला खाना
लस्सी माखन  और मलाई
याद  आये नटखट  कान्हा
अनेक  तरह  पकवानों  से
यहां  सबकी भरती  थाली
हरे भरे ....................

सादगी भरी  लोगो में यहां
पहनावा  है सबका   सादा
यहां आलस्य का नाम नही
काम करें खेतों   में ज्यादा
नही है कमी पानी की यहां
बहती   यहाँ नदियाँ  नाली
हरे भरे .....................

डंका  बजे खिलाड़ियों का
ये  खेल ही  हमारी जान है
ओलम्पिक   हो   एशियाड
इन्ही  से इसकी पहचान है
कर  देते कब्जा मेडलो पर
आये न  कभी हाथ  खाली
हरे भरे ......................

सेना  से हमारा गाढ़ा नाता
हरकोई सैनिक बनना चाहे
नही दिखाते पीठ कभी भी
सदा  देश का गौरव बढाये
मुस्कराते  रहे  लोग "संजू "
हर  चेहरे  पर  दिखे लाली
हरे  भरे हर  खेत  यहाँ  के
दिखे   चहुंओर   हरियाली

आई है मुस्कान येअलग- सी
सालो से उदास इस चेहरे पर
मौका मिला है कितना प्यारा
ये दिवाली  मनायेंगे  घर  पर

खूब जली  चाइनीज लड़िया
दिये मिट्टी के जगेंगे इस बार
होती  रही  जो शांत दिवाली
हल्ले वाली होगी वो इस बार
होगा कितना अलग  नजारा
जायेंगे  रॉकेट लेकर छत पर
मौका मिला है .................

अकेले -अकेले मनाते थे जो
मनायेंगे अब   घरवालों  संग
होगी  कितनी रंगीन दिवाली
जो  हो  चुकी  लगभग बेंरंग
नही   मिलते घर के पकवान
खायेंगे  वो अब जी भर कर
मौका मिला है ................

बचपन वाली यादें   फ़िर से
पटाखे   छोड़कर   लानी  है
गायब  हुई  थी जो खुशियाँ
इस  बहाने  वापिस पानी है
चलेगी  चरखी और  अनार
उठा  लेंगे  आसमां सिर पर
मौका मिला है .............

उठाओ  अब बैग कंधे पर
करो  घर चलने की तैयारी
हुई ही  परेशानियां जितनी
उनको  भुलाने की है बारी
छोडो  सब   काम " संजू "
घर  चलने  की तैयारी कर

मौका मिला है  एक प्यारा
ये दिवाली मनायेंगे घर पर
आई है मुस्कान अलग सी
सालों  से उदास  चेहरे पर

सूखे  पड़े रिश्तों के बगीचे
रंग   बिरंगे फूल खिला दो

     बनी है  नफरत की दीवारें
     सबको  अब तुम मिटा दो

बुझती  हुई  आशाओं पर,
उम्मीद  के दिये  जला दो

     न  हो  निराशा   कहीं  भी
     आशा हर कोने में जगा दो

कुछ जलाओ अपने  लिये
कुछऔरों के लियेजला दो

     छोड़ो अँधेरे का दामन सब
     प्रकाश  हर तरफ़ फैला दो

बैरभाव दिल में न हो कहीं
भाईचारा चहुंओर फैला दो

     त्यागो अँधेरी रात तुम अब
     सूर्य की और क़दम बढा दो

त्याग दो सभी नाखूशी संजू
खुशियों के दीप अब जला दो

बाल दिवस के दो चेहरे

पहला दृश्य  :-
आई एस बी टी  से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन की और जाते हुए मैंने कुछ बच्चे देखे जो शायद किसी झुग्गी से सम्बन्ध रखते थे ! एक चौराहे पे बेचारे खेल रहे थे ! शायद  उनके मम्मी पापा काम पर निकल चुके थे और वो बेचारे बाल दिवस से अंजान अपनी ही मस्ती में खोये हुए थे ! पंद्रह - बीस बच्चों में शायद ही कोई ऐसा बच्चा होगा जिसने आधे कपड़े पहने हो अन्यथा सभी लगभग नंगे बदन ही सुबह की ठंड का मजा ले रहे थे !उनके लिये आज का दिन सिर्फ एक छुट्टी था और पूरा दिन खेलने के लिये था !

दूसरा दृश्य :-

जैसे ही ऑटो रेलवे स्टेशन की और मुड़ने वाला था कुछ बच्चे भागे - भागे अपने हाथ फैलायें आये ! उनके माँगने का अंदाज़ तो लगभग सबको पता ही होता है ? आगे फ़िर कुछ बच्चे बाल दिवस मना रहे थे ! कोई अखबार बेच रहा था , कोई भीख माँग रहा था , कोई चाय के बर्तन साफ कर रहा था  तो कोई जूतों को पालिश कर रहा था ! क्या यहीं है  इनका बाल दिवस ???

अब देखना कोई गुलाब लगाकर चाचा बन जयेगा ,, कोई कैलाश सत्यवर्ती बनकर इनके साथ फोटो खिंचवाकर नोबल पुरस्कार ले जायेगा तो कोई स्लमडॉग मिलेनियर फिल्म बनाकर करोड़ों कमाएगा और इन बच्चों का जीवन स्तर इसी तरह  गिरता जायेगा ! वास्तव में धिक्कार है ऐसी व्यवस्था पर !

मरना  होगा पल  पल ऐसे ही इनको
बचाने   कोई   मसीहा  नही  आयेगा
ज्यों ज्यों  बढ़ती  जायेगी उम्र इनकी
जीवन में अँधेरा यूँ ही बढ़ता जायेगा

होश   सम्भालते  ही  अपना  इनको
इसी तरह  रोज़ी - रोटी कमाना होगा
कभी  मिल  जायेगा   खाना   शायद
कभी कभी ऐसे भूखे सो जाना होगा
पूरा  दिन करते रहे  ये  मज़दूरी चाहे
कमाई  इनकी कोई और खा जायेगा
मरना होगा पल - पल ..........

अधनंगा रहे सदा  तन  - बदन इनका
शायद ही पहने ये  कभी  कपड़े मिले
खाते रहे फटकार  लोगो की दिनभर
घर आते इन्हे माँ बाप के झगडे मिले
दुश्मन   बन  जायेगा  बाप ही इनका
हर  दिन  इनको  वो  यूँ  ही सतायेगा
मरना होगा पल - पल .............

खिंचवाकर  दो  चार फोटो संग इनके
शायद  कोई नोबल  पुरस्कार ले जाये
बनाकर  स्लमडॉग  मिलेनियर इन पर
ऑस्कर  अवार्ड  तक कोई जीत लाये
तड़फ़ते  रहेंगे क्या उम्र भर ये ऐसे ही
या फ़िर  कोई मदद को हाथ बढायेगा
मरना होगा पल पल .................

सुनो  ए नेताओ,सुनो ए समाजसेवियों
कुछ  इन  गरीबों  का  भी ख्याल करो
है ये भी  हिस्सा  अपने ही समाज का
रुका हुआ इनका भविष्य बहाल करो
नही छीनो बचपन इनका तुम " संजू "
होकर जवां ये  अपना गौरव बढाएगा

ए मेरी  धरती , ए मेरे घर
अब  मुझको  तू  बुला ले
थक  चूका  हूँ बहुत अब
अपने आँचल में सुला ले

आता  है  याद  बहुत  तू
पूरा   ही  दिन  खलता है
मन  तेरे  विरह  में   अब
ये  सारा  दिन  जलता है
थी  जितनी  भी  खताये
सबको  तू  अब भुला ले
थक चुका ..............

नही   लगता अब  सफर
ये अब  पहले सा सुहाना
नही  दिखता  अपनापन
क्यूँ  लगता  सब बेगाना
देदो सजा चाहे कोई तुम
चाहे  पास बैठा रूला ले
थक चुका ...............

दूरियों  का  गड्डा अब तो
होता ही जा रहा है गहरा
चेहरे की इस मुस्कान पर
लग  चुका  है  एक पहरा
तोड़  दो  अब  पहरे सारे
बंधन  सारे  ये  धुला   ले
थक चुका ...............

ढूंढ़ता  ही रहता हूँ हरदम
घर आने का  कोई बहाना
चाहता  रहता   हूँ अब तो
हरपल  तेरे ही पास आना
भेजो  बुलावा कोई जल्दी
कहीं  "संजू "तुझे भुला ले
थक चुका ....................

ए   मेरी  धरती , ए मेरे घर
अब   मुझको   तू  बुला ले
थक   चूका   हूँ बहुत अब
अपने   आँचल में सुला ले