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Wednesday, April 13, 2016

माँ
1
ममता   की  मूर्त है  वो
प्यार का  भरा भंडार है

नाजुक सी होने पर भी
वो ही सम्पूर्ण  संसार है

बन  सकती है कठोर ये
पर  ममता से लाचार है

हंसमुख  सा तेरा चेहरा
हर  ख़ुशी ये का द्वार है

न करें तेरा  सम्मान गर
तो  जीवन  ही बेकार है

सारा   दिन करती काम
पर  दिखती नही हार है

तेरे ही कारण सफल हूँ
सफलता  का आधार है

कर लो इसकी सेवा गर
तो हर  स्वप्न  साकार है

कर सको  इसकी पूजा
धाम  यहां  सब  चार है

उज्ज्वल  तुझ  पर बस
इसका  ही  अधिकार है

2

है   उसमें इतनी  अलौकिक  शक्ति
जो तुम्हे  हर ख़ुशी  दिला सकती है

कैसी भी   बंजर जमी मिले उसको
उसमें  भी वो फूल खिला सकती है

है    इतनी   दरियादिल  और दिलेर
छाती से अपनी दूध पिला सकती है

है बहुत  ज्यादा   कोमल और शांत
पर दुःख में वो तिलमिला सकती है

रहती है हमेशा  मुस्कराती  हुई  पर
नाराजगी में दुनियाँ हिला सकती है

करते रहना उसकी सेवा "उज्ज्वल
हर मंज़िल से तुझे मिला  सकती है
3

मैंने देखा एक ऐसा मूर्ख भी

जिसने भगवान को ढूँढ़ने
के लिये माँ को बिलखते छोड़ दिया
कोन बताएँ उस नादां को
कि जल्दी कामयाबी के चक्कर में
उसने स्वर्ग की जो सीढ़ी थी
उसको ही रूला रुला के तोड़ दिया

4

वो  पढ़ते   रहे वेदों को
वो  रटते   रहे गीता को
मन की  शांति  के लिये
घर की समृद्धि के लिये

और एक मैं अनपढ़ था
जो बस दो  बार
माँ का
नाम जपकर
जन्नत पा गया
और
करके  सेवा
अपनी  माँ  की
इस दुनियाँ पर छा गया

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