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Tuesday, October 13, 2015

एक रचना वरिष्ठ नागरिकों को समर्पित ........

साथ  छोड़ने  लगी  टहनियाँ
निकलने वाले है अब   प्राण
दूसरो  के  लिये  रहा  तैयार
रखूंगा  मरते दम तक  ध्यान

बाल रूपी पत्ते भी अब तो
एक  एक  कर  झड़ने लगे
बीमारियों  रूपी कीट अब
हजारों  ऊपर  चढ़ने   लगे
सुनने   लगा  है  कम  मुझे
सिकुड़ने लगे  है मेरे  कान
साथ छोड़ने ...............

हड्डियों  रूपी तना मेरा  ये
धीरे धीरे  सिकुड़ने लगा है
लताओं रूपी साथ सबका
धीरे धीरे ये  बिछुड़ने लगा
नही रुकेंगे रोकने से  अब
ये  जो रखते थे मेरा  मान
साथ छोड़ने .................

औलादों  रूपी  जडे  मेरी
न जाने कब  उखड़  जाये
जीवन रूपी खेल  मेरा  ये
न जानेे  कब  बिगड़ जाये
कट  चुकी  है  मिट्टी  सारी
पानी ने जड़ों को दिया छान
साथ छोड़ने ................

न रखना ध्यान  मेरा  चाहे
मिटने देना मेरी अब हस्ती
न देना चाहे सहारा "संजू "
डूबने देना मेरी  ये  कश्ती
पर फूटने देना अंकुर  मेरे
जो  बनेगी  मेरी   पहचान
साथ छोड़ने लगी टहनियाँ
निकलने वाले है अब प्राण
दूसरों के लिये  रहा  तैयार
रखूंगा मरते दम तक ध्यान

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