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Tuesday, October 13, 2015

पहले  तोड़ी  साइकिल  हमने
फ़िर  आई  पहिये  की   बारी
रिम को लगाया छत पर और
पहिये  से  गलिया छान मारी

गाड़ी थी सबकी अपनी
सबका था अलग पहिया
लगता था ऐसे हम सबको
छान मारेंगे ये सारी दुनियाँ

न जाने  फट जाती शर्ट
न जाने कब फटती निक्कर
बन जाते बंदर हम सब
नही छोड़ते  पीपल कीकर

देख लिये नहा नहाकर
नदी नाले और तालाब सारे
उछलते -कूदते थे ऐसे हम
मानो छू लेंगे आसमां के तारे

हो जाते बेजुवां हम
जब आती स्कूल जाने की बारी
न बोले स्कूल जाने को कोई
चाहे चला दे हम पर आरी

अब जब वो दिन याद आते
आँखो में आँसु भर जाते
काश रबड़ का टायर लेकर "संजू "
फटी कच्छी वाले दोस्त फ़िर बुलाते

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