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Thursday, September 24, 2015

रहने लगा हूं खामोश मैं
आके मुझे दुलार दे
नही लगता मन अब मेरा
मुझे अब अपना प्यार दे
मँझदार में है नैया मेरी
इसे अब कर पार दे
लड़ूं मन की उलझनों से
ऐसा कोई हथियार दे
भटक जाता है मन कई बार
इसे थोड़ी डाँट फटकार दे
बैठ जाऊँ मैं शांति से
चाहे एक दो थप्पड़ ही मार दे
थक गया हूं काम करते करते
मुझे वो बचपन वाला रविवार दे
नही भाता खाना होटल का
अपने हाथो का मिर्ची अचार दे
लगा दो मुझे रास्ते पे फ़िर
चाहे सुना दो चार दे
बन गया हूं भटकता पंछी
बैठने को कोई आधार दे
खूब तोड़ मरोड़ लिया है अब
मुझे कोई स्थाई आकार दे
बहुत देख लिये सपने "संजू "
कर किसी एक को साकार दे

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