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Wednesday, February 7, 2018

चार  कामों  हम  थोड़े   क्या उलझ गये
तुम  ही  मुझको   बेपरवाह  समझ  गये

तुम ही तो मेरे  आदर्श   और   सहारा थे
फ़िर  तुम्हारी   नज़र  में क्यों आवारा थे

तेरे सपनों के लिये हम  दिनभर भागे थे
देने खुशियाँ सब तुम्हे रातों हम जागे थे

कुछ  कम  चीजों  की तुमको चाहत थी
शायद  इसी   बात की थोड़ी  राहत  थी

पर हम तेरे लिये कुछ  करना  चाहते थे
इसलिये तो खुदको सदा  ऐसा रखते थे

बस इन्ही चीजों की थोड़ी  परेशानी थी
कामयाबी की  रच रहे  नई  कहानी थी

माना  हर  बात हमको तुम्हे बतानी थी
पर किश्ती भीमंजिल तक पहुँचानी थी

पर शायद सोचता हूँ सब कुछ छोड़ दूँ
औरमुँह जिम्मेदारियों की और मोड़ लूँ

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