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Wednesday, February 7, 2018
छोड़  ख़ामोशी 
आज बोल ही पड़ा आखिर 
सूना पड़ा वो तालाब 
कहाँ रहते हो जनाब ? ? ?
आते नही हो छलाँग लगाने

कर के घरवालों से नये बहाने 
शाँत पड़े मेरे इस पानी में 
क्यूँ नही आते हो तुम नहाने ? ? ?

उछलता था मैं तो बस तेरे ही सहारे 
सूने पड़े रहते है अब मेरे ये किनारे 
खिल जाती थी बूँद बूँद मेरे पानी की 
कूदता था जब तू  यहाँ मस्ती  के मारे

सच बता तू किस दुनियाँ में खो गया ? 
जो बीज  यहाँ  सन्नाटे के तू बो गया 
किन जिम्मेदारियों तले दब गया ? ? ? 
कौनसे कोने में तू जाकर सो गया ? ? ?

याद करके दिन मेरे वो पुराने 
मैं लगा उस तालाब को बताने

गोते तो लगाता हूँ आजकल भी मैं 
पर लगाता हूँ जिम्मेदारियों के संसार में 
पानी की जगह खेलता हूँ कीचड़ से अब 
इस मक्कारी ओर धोखेबाज बाजार में

कूदता तो अब भी हूँ , 
खेलने नही 
पर अपने पैरों को बचाने 
जहाँ लगाते है ये लोग 
पल पल काटने के  निशाने

भूला नही हूँ तुझे 
जी तो अब भी मेरा , 
तेरे पास आने को करता है 
पर सच ये भी है मन मेरा 
तेरे किनारे बैठे मगरो से डरता है

छोड़ दे मुझको याद करना अब तू , 
मैने तो खुद को समझा लिया है 
तरसता है सुकून को पल पल मैं 
इतना खुद को उलझा दिया है

तू भी 
अब बच्चो का इँतज़ार करना छोड़ दे
वो आज भी खुश है 
वो आज भी गोते लगा रहे है 
वो आज भी मस्ती से नहा रहे है 
पर तुझमे नही , , , 
क्योंकि उनको तू छोटा लगता है
उनको  पाँच इंच के फोन में 
आजकल पूरा सागर दिखता है

कवि किरमारा 'उज्जवल  '

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