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चाहता था रहना तन्हा मैं, इसीलिये तो जाके दूर सोया था नही पसंद थी भीड़ दुनियादारी की, मैं अपनी ही दुनिया मे खोया था कोई करें समय खराब ...
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1. पानी सा निर्मल है वो और पर्वत सा कठोर करता सारा दिन काम नही करता कोई शोर खुद के सपने छोड़कर धूप आँधी में दौड़कर हमे ...
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लेडी फिंगर एक अध्यापक के मन में एक दिन हरी सब्जी खाने का ख्याल आया तो उसने कक्षा में से एक कमजोर से बच्चे को बुलाया हुआ कुछ यूँ अध्य...
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हर रोज़ दुनियाँ बदलने की सोच लेता हूँ मैं पर अब तक क्यों खुद को न बदल पाया हूँ बन चुका हूँ कितना नादां मैं ,किसको बदलू रोशनी है दु...
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याद आता है समय अब वो जब बिन दोस्त शाम नही कटती थी था छोटा सा मैं पर दुनियॉ मुझसे भी छोटी लगती थी वो स्कूल का मस्ती भरा रस्ता, था कच्चा...
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अब तो बता दे जिंदगी __________________ बता दें जिंदगी तू, कितना और मुझे भटकाएगी सताया है तूने खूब कितना और अब सताएगी कितने तूने खेल...
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हिन्द देश है तन हमारा हिन्दी हमारी जान है इसी से धड़कता है ये दिल इसी से हमारा मान है ! रखती है हमें बांधकर एक सुगंधित माला में सीखते ...
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उस पल का इंतजार है आजकल जो कुछ चल रहा है उसमे देखने में आता है कि आप किसी को कंकड़ मारो तो बदले में आपको सौ प्रतिशत प्रतुत्तर में पत्थर मिल...
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Friday, January 8, 2016
कशमश है उँगलियों में
आज फ़िर से ये उँगलियाँ
जाने क्यों कशमशा रही है
चाहती है कुछ लिखना शायद
मन ही मन कुछ ये गा रही है
फूटेंगी ये आज
ज़रूर को रचना बनकर
लिखेंगी कुछ ये पक्का
खुद ही आगे बढ़कर
पड़ा मेज के कोने पे
सफेद पन्ना भी आज तो
यूँ ही फ़ड़फ़ड़ा रहा है
चलाने खुद पर कलम
कब से ये अड़ा जा रहा है
मन में भी अलग ही
उथल पुथल मची है
कुछ होगा नया आज
ये बात तो मन में जंची है
सुबह से ये दिल भी
यूही भटक रहा है
कुछ न कुछ आज तो
पक्का खटक रहा है
बन जायेगा संगम जब
इन सब चीजों का गर
होगा शब्दों का मेल और
दिखेगा सबका असर
शायद वीरां प्रदेश में
कोई बगिया खिलने वाली है
बनाकर कोई रस्ता
चीर कर पहाडों को
कोई नदी निकलने वाली है
शब्दों के मेल से कोई नई
"संजू" लय मिलने वाली है
इस उथल पुथल में से
कोई रचना निकलने वाली है
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