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चाहता था रहना तन्हा मैं, इसीलिये तो जाके दूर सोया था नही पसंद थी भीड़ दुनियादारी की, मैं अपनी ही दुनिया मे खोया था कोई करें समय खराब ...
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1. पानी सा निर्मल है वो और पर्वत सा कठोर करता सारा दिन काम नही करता कोई शोर खुद के सपने छोड़कर धूप आँधी में दौड़कर हमे ...
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लेडी फिंगर एक अध्यापक के मन में एक दिन हरी सब्जी खाने का ख्याल आया तो उसने कक्षा में से एक कमजोर से बच्चे को बुलाया हुआ कुछ यूँ अध्य...
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हर रोज़ दुनियाँ बदलने की सोच लेता हूँ मैं पर अब तक क्यों खुद को न बदल पाया हूँ बन चुका हूँ कितना नादां मैं ,किसको बदलू रोशनी है दु...
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याद आता है समय अब वो जब बिन दोस्त शाम नही कटती थी था छोटा सा मैं पर दुनियॉ मुझसे भी छोटी लगती थी वो स्कूल का मस्ती भरा रस्ता, था कच्चा...
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अब तो बता दे जिंदगी __________________ बता दें जिंदगी तू, कितना और मुझे भटकाएगी सताया है तूने खूब कितना और अब सताएगी कितने तूने खेल...
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हिन्द देश है तन हमारा हिन्दी हमारी जान है इसी से धड़कता है ये दिल इसी से हमारा मान है ! रखती है हमें बांधकर एक सुगंधित माला में सीखते ...
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उस पल का इंतजार है आजकल जो कुछ चल रहा है उसमे देखने में आता है कि आप किसी को कंकड़ मारो तो बदले में आपको सौ प्रतिशत प्रतुत्तर में पत्थर मिल...
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उस पल का इंतजार है आजकल जो कुछ चल रहा है उसमे देखने में आता है कि आप किसी को कंकड़ मारो तो बदले में आपको सौ प्रतिशत प्रतुत्तर में पत्थर मिल...
जीविका निर्वाह की व्यस्तता में हम कुछ इस तरह खो गये
कि हम लौहडी और संक्राति जैसे त्योहारों को भूल गये
नही याद आयी
वो तिलों वाली रेबडिय़ां
नही याद आयी
वो गर्मा गरम मूंगफलियाँ
जी हाँ दोस्तों, सच में कितनी अजीब विडम्बना हैं कि जीवन की व्यस्तता में इस हद तक डूब गये कि हमें ये त्योहार भी याद नही आये !
अब जब काम निपटाकर जब सोने की तैयारी की तो देखा मित्रों, सम्बन्धियों के सैंकङो शुभकामना संदेश आये हुए थे ! ओह हो हम इतने लापरवाह कैसे हो सकते हैं कि हमें हमारे बचपन के मस्ती वाले त्योहार भी याद न आये ?
अब याद आ रहे हैं वो पल जब पाँचवी -छटी कक्षा में पाँच पाँच -दस दस रुपये इक्कठ्ठे करते थे और कुछ पैसे अध्यापकों से लेकर रेबडिय़ां और मूँगफलियाँ लाते थे ! पूरी कक्षा के सभी बच्चे एक साथ बैठकर खाते थे !सच में कितने अनमोल थे वो पल ? रात को जब सब दोस्त मिलकर आग जलाते थे और उसके चारो और बैठकर गाने गाते थे और मजाक बनाते थे !
शायद वो पल आज दुबारा न आ पाये पर आज भी उन पलों को याद करके दिल बाग बाग हो जाता हैं , वो यादें आज भी जब ताजा हो जाती हैं तो मानो हमें सब कुछ मिल गया !
कितना अपनापन होता था इस त्योहार में, कितनी खुशी होती थी और कितना उत्साह होता था इसमें !
इसलिए सबसे ये ही निवेदन हैं मित्रों आप जहां भी हो-
इस संस्कॄति को गुम मत होने देना
बेशक खो जाओ कहीँ पर इन त्योहारों के उत्साह को कम होने मत देना
धन्यवाद
संजय किरमारा
13/1/2016
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