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Wednesday, January 13, 2016

जीविका निर्वाह की व्यस्तता में हम कुछ इस तरह खो गये
कि हम लौहडी  और संक्राति जैसे त्योहारों  को  भूल गये

नही याद आयी
वो तिलों वाली रेबडिय़ां
नही याद आयी
वो गर्मा गरम मूंगफलियाँ

जी हाँ दोस्तों, सच में कितनी अजीब विडम्बना हैं कि जीवन की व्यस्तता में इस हद तक डूब गये कि हमें ये त्योहार भी याद नही आये !
अब जब काम निपटाकर जब सोने की तैयारी की तो देखा मित्रों, सम्बन्धियों के सैंकङो शुभकामना संदेश आये हुए थे !  ओह हो हम इतने लापरवाह कैसे हो सकते हैं कि हमें हमारे बचपन के मस्ती वाले त्योहार भी याद न आये ?
अब याद आ रहे हैं वो पल जब पाँचवी -छटी  कक्षा में पाँच पाँच -दस दस रुपये इक्कठ्ठे करते थे और कुछ पैसे अध्यापकों से लेकर रेबडिय़ां और मूँगफलियाँ  लाते थे ! पूरी कक्षा के सभी बच्चे  एक साथ बैठकर खाते थे !सच में कितने अनमोल थे वो पल ? रात को जब सब दोस्त मिलकर आग जलाते थे और उसके चारो और बैठकर गाने गाते थे और मजाक बनाते थे !
शायद वो पल आज दुबारा न आ पाये पर आज भी उन पलों को याद करके दिल बाग बाग हो जाता हैं , वो यादें आज भी जब ताजा हो जाती हैं तो मानो हमें सब कुछ मिल गया !
कितना अपनापन होता था इस त्योहार में, कितनी खुशी होती थी  और कितना उत्साह होता था इसमें !
इसलिए सबसे ये ही निवेदन हैं मित्रों आप जहां भी हो-
इस संस्कॄति को गुम मत होने देना  
बेशक खो जाओ कहीँ पर इन त्योहारों के उत्साह को कम होने मत देना

धन्यवाद
संजय किरमारा
13/1/2016

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