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Monday, December 14, 2015

तब और अब

उसे पसंद था अकेलापन सदा
पर दोस्तों ने कभी अकेला न छोड़ा
आज चाहता है वो साथ सबका
पर हर कोई न जाने क्यों
अकेला ही छोड़ता जा रहा है

रहता था सारा दिन वो उछलता
पर मन उसका रहता था शांत
पर आज जब वो चाहता है शांति
तो न जाने क्यों ये मन उसका
किसी न किसी उधेड़बुन में रहता है

नही पसंद थी उसे घर की चाय
चाहा उसने सदा काफ़ी पीना
किसी बड़े से रेस्टोरेंट में
पर आज उसे याद आती है
वो चाय अकेले बैठे- बैठे
जब काफ़ी पी रहा है रेस्टोरेंट में

तब जल्दी रहती थी उसे
अपने ही दोस्तों को पछाड़कर
सबसे आगे निकलने की
पर आज जब वह निकल चुका है
सबको पीछे छोड़कर तो
याद आ रहे है वो पुराने दोस्त

तब आती थी नींद खराटेदार
पर मन नही करता था सोने को
पर आज जब करता है मन सोने को
तो न जाने ये नींद कहाँ चली गयी
इन कागज के टुकडों की चिंता
उसकी वो नींद छीन ले गयी

"संजू "छोड़ना चाहता था  बचपना
तलाश रहती थी कामयाबी की
पर आज जब मिल गयी है कामयाबी
तो मन रहता है उसका बेचैन
उसी पुराने बचपने को पाने को

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