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चाहता था रहना तन्हा मैं, इसीलिये तो जाके दूर सोया था नही पसंद थी भीड़ दुनियादारी की, मैं अपनी ही दुनिया मे खोया था कोई करें समय खराब ...
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1. पानी सा निर्मल है वो और पर्वत सा कठोर करता सारा दिन काम नही करता कोई शोर खुद के सपने छोड़कर धूप आँधी में दौड़कर हमे ...
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लेडी फिंगर एक अध्यापक के मन में एक दिन हरी सब्जी खाने का ख्याल आया तो उसने कक्षा में से एक कमजोर से बच्चे को बुलाया हुआ कुछ यूँ अध्य...
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हर रोज़ दुनियाँ बदलने की सोच लेता हूँ मैं पर अब तक क्यों खुद को न बदल पाया हूँ बन चुका हूँ कितना नादां मैं ,किसको बदलू रोशनी है दु...
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याद आता है समय अब वो जब बिन दोस्त शाम नही कटती थी था छोटा सा मैं पर दुनियॉ मुझसे भी छोटी लगती थी वो स्कूल का मस्ती भरा रस्ता, था कच्चा...
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अब तो बता दे जिंदगी __________________ बता दें जिंदगी तू, कितना और मुझे भटकाएगी सताया है तूने खूब कितना और अब सताएगी कितने तूने खेल...
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हिन्द देश है तन हमारा हिन्दी हमारी जान है इसी से धड़कता है ये दिल इसी से हमारा मान है ! रखती है हमें बांधकर एक सुगंधित माला में सीखते ...
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उस पल का इंतजार है आजकल जो कुछ चल रहा है उसमे देखने में आता है कि आप किसी को कंकड़ मारो तो बदले में आपको सौ प्रतिशत प्रतुत्तर में पत्थर मिल...
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उस पल का इंतजार है आजकल जो कुछ चल रहा है उसमे देखने में आता है कि आप किसी को कंकड़ मारो तो बदले में आपको सौ प्रतिशत प्रतुत्तर में पत्थर मिल...
बाल दिवस के दो चेहरे
पहला दृश्य :-
आई एस बी टी से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन की और जाते हुए मैंने कुछ बच्चे देखे जो शायद किसी झुग्गी से सम्बन्ध रखते थे ! एक चौराहे पे बेचारे खेल रहे थे ! शायद उनके मम्मी पापा काम पर निकल चुके थे और वो बेचारे बाल दिवस से अंजान अपनी ही मस्ती में खोये हुए थे ! पंद्रह - बीस बच्चों में शायद ही कोई ऐसा बच्चा होगा जिसने आधे कपड़े पहने हो अन्यथा सभी लगभग नंगे बदन ही सुबह की ठंड का मजा ले रहे थे !उनके लिये आज का दिन सिर्फ एक छुट्टी था और पूरा दिन खेलने के लिये था !
दूसरा दृश्य :-
जैसे ही ऑटो रेलवे स्टेशन की और मुड़ने वाला था कुछ बच्चे भागे - भागे अपने हाथ फैलायें आये ! उनके माँगने का अंदाज़ तो लगभग सबको पता ही होता है ? आगे फ़िर कुछ बच्चे बाल दिवस मना रहे थे ! कोई अखबार बेच रहा था , कोई भीख माँग रहा था , कोई चाय के बर्तन साफ कर रहा था तो कोई जूतों को पालिश कर रहा था ! क्या यहीं है इनका बाल दिवस ???
अब देखना कोई गुलाब लगाकर चाचा बन जयेगा ,, कोई कैलाश सत्यवर्ती बनकर इनके साथ फोटो खिंचवाकर नोबल पुरस्कार ले जायेगा तो कोई स्लमडॉग मिलेनियर फिल्म बनाकर करोड़ों कमाएगा और इन बच्चों का जीवन स्तर इसी तरह गिरता जायेगा ! वास्तव में धिक्कार है ऐसी व्यवस्था पर !
मरना होगा पल पल ऐसे ही इनको
बचाने कोई मसीहा नही आयेगा
ज्यों ज्यों बढ़ती जायेगी उम्र इनकी
जीवन में अँधेरा यूँ ही बढ़ता जायेगा
होश सम्भालते ही अपना इनको
इसी तरह रोज़ी - रोटी कमाना होगा
कभी मिल जायेगा खाना शायद
कभी कभी ऐसे भूखे सो जाना होगा
पूरा दिन करते रहे ये मज़दूरी चाहे
कमाई इनकी कोई और खा जायेगा
मरना होगा पल - पल ..........
अधनंगा रहे सदा तन - बदन इनका
शायद ही पहने ये कभी कपड़े मिले
खाते रहे फटकार लोगो की दिनभर
घर आते इन्हे माँ बाप के झगडे मिले
दुश्मन बन जायेगा बाप ही इनका
हर दिन इनको वो यूँ ही सतायेगा
मरना होगा पल - पल .............
खिंचवाकर दो चार फोटो संग इनके
शायद कोई नोबल पुरस्कार ले जाये
बनाकर स्लमडॉग मिलेनियर इन पर
ऑस्कर अवार्ड तक कोई जीत लाये
तड़फ़ते रहेंगे क्या उम्र भर ये ऐसे ही
या फ़िर कोई मदद को हाथ बढायेगा
मरना होगा पल पल .................
सुनो ए नेताओ,सुनो ए समाजसेवियों
कुछ इन गरीबों का भी ख्याल करो
है ये भी हिस्सा अपने ही समाज का
रुका हुआ इनका भविष्य बहाल करो
नही छीनो बचपन इनका तुम " संजू "
होकर जवां ये अपना गौरव बढाएगा
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